Book Title: Kasaypahudam Part 14
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
View full book text
________________
३०२
जयधवलासहिदे कसायपाहुडे णवरि 'तहाणुभागेसणंतेसु' त्ति एसो भासगाहाए चरिमावयवो अणुभागविसयमोकड्डुक्कड्डणाणं जहण्णुक्कस्सणिक्खेवपमाणावहारणे पडिबद्धो सुगमो त्ति चुणिसुत्तयारेण तन्विहासा णाढत्ता, उवरि मूलगाहाए पडिबद्धविदियभासगाहाए अणुभागविसयाणमोकड्डुक्कड्डणाणं जहण्णुक्कस्साइच्छावणाणिक्खेवेहिं विसेसियण परूवणोवलंमादो च । तम्हा तत्थेव तस्स वित्थारपरूवणं कस्सामो त्ति एदेणाहिप्पाएण एत्थाणुभागविसया पयदपरूवणा णाढत्ता त्ति घेसव्वं ।
* एत्तो सत्तमी मूलगाहा।
5 ३८१. सुगमं । गरि एसा जइ वि ओवडणाए तदिया मूलगाहा तो वि संकामणपट्ठवगस्स चउहिं मूलगाहाहिं सह जोइज्जमाणा सत्तमी मूलगाहा त्ति णिदिवा । का पुण ओवट्टणा णाम ? द्विदि-अणुमागदुवारेण कम्मपदेसाणमोकड्डणा उक्कड्डणासहभाविणी ओवट्टणा ति भण्णदे । तदो तन्विसयजहण्णुक्कस्साइच्छावण-णिक्खेवादिपरूवणाए णिबद्धत्तादो एदाओ तिणि मूलगाहाओ ओवट्टणाए पडिबडाओ ति मणिदाओ। तम्हा संकामणपट्ठवगविवक्खाए सत्तमी मूलगाहा एहिमवयारिज्जदि त्ति सुसंबद्धं ।
समाप्त हुई। इतनी विशेषता है कि 'तहाणुभागेसणंतेसु' इस प्रकार अनुभागविषयक अपकर्षण और उत्कर्षणके जघन्य और उत्कृष्ट निक्षेपप्रमाणके अवधारणासे सम्बन्ध रखनेवाला यह भाष्यगाथाका अन्तिम अवयव सुगम होनेसे चूर्णिसूत्रकारने तद्विषयक विभाषा आरम्भ नहीं की, क्योंकि उपरिम मल गाथासे प्रतिबद्ध दसरी भाष्यगाथामें अनभागविषयक अपकर्षण और उत्कर्षणसम्बन्धी जघन्य और उत्कृष्ट अतिस्थापना और निक्षेपसे विशेषित प्ररूपणा पाई जाती है, इसलिये वहीं उसको विस्तारसे प्ररूपणा करेंगे, इसलिए इस अभिप्रायसे यहां अनुभागविषयक प्ररूपणा आरम्भ नहीं की गई ऐसा यहाँ ग्रहण करना चाहिये।
* अब आगे सातवीं मूलगाथा आरम्म होती है।
$ ३८१. यह मूल सूत्रगाथा सुगम है। इतनी विशेषता है कि यह यद्यपि अपवर्तनाविषयक तीसरी मूल गाथा है तो भी संक्रामकप्रस्थापकसम्बन्धी चार मूल गाथाओंके साथ गिनती करवेपर यह सातवीं मूलगाथा है ऐसा निर्देश किया गया है।
शंका-अपवर्तना किसे कहते हैं ?
समाधान-स्थिति और अनुभागरूपसे उत्कर्षणके साथ होनेवाले कर्मप्रदेशोंके अपकर्षणको अपवर्तना कहते हैं।
इसलिए तद्विषयक जघन्य और उत्कृष्ट अतिस्थापना और निक्षेप आदिकी प्ररूपणामें निबद्ध होनेसे ये तीन मूलगाथाएं अपवर्तनाके कथनके साथ प्रतिबद्ध हैं ऐसा यहां कहा है। इस कारण संक्रामण प्रस्थापककी विवक्षामें सातवीं मूलगाथा इस समय अवतरित की जाती है इस प्रकार यह सब कथन सुसम्बद्ध है।