Book Title: Kasaypahudam Part 14
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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खवगसेढाए सत्तममूलगाहाए विदियभासगाहा
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* उदयावलियपविट्ठे अणुभागे मोत्तूण सेसे सव्वे चेव अणुभागे ओकडदि, एवं चेव उक्कडदि ।
$ ४०४. एसो बंधानुसारिओ अत्थो, 'सव्वे वि य अणुभागे' इच्चेदम्मि गाहासुत्ते एवंविहस्स अत्थविसेसस्स सद्दारूढस्स परिष्फुडमुवलंभादो । एसो च थूलत्थो, हिदिदुवारेण उदयावलियबाहिरासेसट्ठिदी ट्ठिदाणमणुभागफदयाणं सव्वेसिमेवोकड्डुक्कड्डणाणं संभवपदुष्पायणादो । ण च परमत्थदो एस संभवो अस्थि, अणुभागविसयाणमोकड्डुक्कड्डणाणं जहण्णाइच्छावणाणिक्खेवमेत्त फद्दयाणि मोत्तूण सेस - फद्दयेसु चैव पवृत्तिदंसणादो । तदो एवंविहस्स विसेसस्साणुवदेसादो बंधाणुसारिओ एसो अत्थो थूलसरूवो त्ति सिद्धं । एवं च थूलत्थं परूवेमाणस्स गाहासुत्तया रस्साहिपायो हिदीओ अस्सियूण समत्थेयव्वो । तं कथं ? उदयावलिय पहुडि सन्वे ट्ठिदिविसेसेसु सव्वाणि अणुभागफद्दयाणि अत्थि, तदो तासु द्विदीसु ओकड्डिज्जमाणासु उक्कड्डिजमाणासु च तत्थ द्विदाणुभागफद्दयाणि सव्वाणि चैव ओकडिदाणि उक्कड्डिदाणि च भवंति, तासु द्विदपरमाणू हिंतो पुधभूदाणमणुभागफद्दयाणमणुवलंभादो ति । एदेणाहिप्पाएण उदयावलियपविट्टाणुभागे मोत्तूण सव्वे चैव अणुभागा द्विदिदुवारेण ओकड्डिज्जंति उक्कड्डिज्जति चेदि भणिदं ।
$ ४०५. एवं ताव बंधाणुसारेण थूलत्थविहासणं काढूण संपहि गाहा सत्तस्से* उदयावलिमें प्रविष्ट हुए अनुभाग को छोड़कर शेष सभी प्रकारके अनुभागका अपकर्षण करता है और इसी प्रकार उत्कर्षण करता है ।
$ ४०४. यह बन्ध (गाथासूत्रके प्रबन्ध) के अनुसार अर्थ है । क्योंकि 'सव्वे वि य अणुभागे' इत्यादि उक्त गाथासूत्र में शब्दारूढ़ (शब्दोंके अनुसार किया जानेवाला) अर्थविशेष स्पष्टरूपसे उपलब्ध होता है । किन्तु यह स्थूल अर्थ है, क्योंकि इसमें स्थिति द्वारा उदयावलिके बाहर सम्पूर्ण स्थितियों में स्थित सभी अनुभागके स्पर्धकोंविषयक अपकर्षण और उत्कर्षणकी सम्भावनाका कथन किया गया है । किन्तु परमार्थसे यह सम्भव नहीं है, क्योंकि अनुभागविषयक अपकर्षण और उत्कर्षणको जघन्य अतिस्थापना और जघन्य निक्षेपप्रमाण स्पर्धकों को छोड़कर शेष स्पर्धकोंमें ही उनकी प्रवृत्ति देखी जाती है । इसलिए इस प्रकारके विशेषका सूत्रगाथामें उपदेश न होनेके कारण बन्धानुसार यह अर्थ स्थूलस्वरूप है यह सिद्ध होता है । इस प्रकार स्थूल अर्थका प्ररूपण करनेवाले गाथा सूत्रकारके अभिप्रायका स्थितियों का आलम्बन लेकर समर्थन करना चाहिये ।
शंका- वह कैसे ?
समाधान -- उदयावलिसे लेकर सब स्थितिविशेषोंमें सभी अनुभागसम्बन्धी स्पर्धक हैं, इसलिए उन स्थितियों का अपकर्षण और उत्कर्षण करनेपर उनमें स्थित सभी अनुभागस्पर्धक अपकर्षित और उत्कर्षित होते हैं, क्योंकि उन स्थितियोंमें स्थित परमाणुओंसे पृथक् अनुभागस्पर्धक नहीं पाये जाते । इस प्रकार इस अभिप्रायसे उदयावलिमें प्रविष्ट हुए अनुभागको छोड़कर सभी अनुभाग स्थिति द्वारा अपकर्षित होते हैं और उत्कर्षित होते हैं यह उक्त कथनका तात्पर्य है । $ ४०५. इस प्रकार सर्वप्रथम बन्धानुसार स्थूल अर्थकी विभाषा करके अब इस गाथासूत्रके