Book Title: Kasaypahudam Part 14
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh

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Page 333
________________ २९२ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे *तं पुण उकड़ियण भावलियमधिच्छावेयण भावलियाए असंखेजदिमागे णिक्खिवदि। ३५६. गयत्यमेदं सुत्तं । एवमेदेण सुत्तेण जहण्णाइच्छावणाए सह जहण्णणिक्खेवपमाणावहारणं कादूण संपहि एत्तो प्पहुडि अइच्छावणा आवलियमेत्ता चेव अवद्विदा होइ । णिक्खेवो पुण समयुत्तरादिकमेण वड्डमाणो गच्छइ जाव उक्कस्सणिक्खेवो त्ति इममत्थविसेसं परूवेमाणो सुत्तपबंधमुत्तरं भणइ _*णिक्खेवो आवलियाए असंखेजविभागमादि कादूण समयुत्तराए बड्डीए णिरंतरं जाव उक्कस्सओ णिक्खेवो त्ति सव्वाणि हाणाणि अस्थि । ३५७. जहण्णणिक्खेवमादि कादण जाव उक्कस्सओ णिक्खेवो चि एदाणि णिक्खेवडाणाणि गिरंतरं समयुत्तरवड्डीए लमंत्ति त्ति भणिदं होदि । एत्थ संतकम्मअग्गद्विदीए णिरुद्धाए ओघुक्कस्सओ णिक्खेवो ण लब्मदि ति तत्तो हेट्ठा ओसरियण उदयावलियबाहिराणंतरहिदीए वट्टमाणस्स पदेसग्गस्स उक्कस्सओ णिक्खेवो घेत्तव्यो । तम्हि उक्कड्डिज्जमाणे ओघुक्कस्सणिक्खेवसंभवदसणादो। सो वुण ओघुक्कस्सओ णिक्खेयो किंपमाणो ति आसंकाए तप्पमाणावहारणट्ठमाह-- ___ * उकस्सओ पुण णिक्खेवो केत्तिओ। ____* और इस प्रकार सत्कर्मकी उस अग्रस्थितिको उत्कर्षित कर उसे, एक आवलिप्रमाण बन्धस्थितिको अतिस्थापित कर, आवलिके असंख्यातवें मागप्रमाण बन्धस्थितिमें निक्षिप्त करता है। ६३५६. यह सूत्र गतार्थ है। इस प्रकार इस सूत्र द्वारा जघन्य अतिस्थापनाके साथ जघन्य निक्षेपके प्रमाणका अवधारण करके अब इससे आगे अतिस्थापना एक आवलिप्रमाण ही अवस्थित रहती है। किन्तु निक्षेप उत्तरोत्तर एक समय अधिकके क्रमसे वृद्धिंगत होता हुआ उत्कृष्ट निक्षेपके प्राप्त होनेतक बढ़ता जाता है । इस प्रकार इस अर्थविशेषकी प्ररूपणा करते हुए आगेके सूत्रप्रबन्धको कहते हैं * उक्त निक्षेप आकलिके असंख्यात मागसे लेकर उत्तरोत्तर एक समय अधिक वृद्धिके क्रमसे उत्कृष्ट निक्षेप सर्व स्थानगत होनेतक बढ़ता जाता है। 5 ३५७. जघन्य निक्षेपसे लेकर उत्कृष्ट निक्षेपके प्राप्त होनेतक ये निक्षेपस्थान निरन्तर एक-एक समय अधिकके क्रमसे प्राप्त होते हैं यह उक्त कथनका तात्पर्य है । यहाँपर सत्कर्मकी अग्र स्थितिके विवक्षित होनेपर ओघ उत्कृष्ट निक्षेप नहीं प्राप्त होता, इसलिए अग्रस्थितिसे नीचे उतरकर उदयावलिके बाहरको अनन्तर स्थितिमें विद्यमान प्रदेशजकी अपेक्षा उत्कृष्ट निक्षेप ग्रहण करना चाहिये, क्योंकि उस स्थितिका उत्कर्णण करनेपर ओघ उत्कृष्ट निक्षेप सम्भव देखा जाता है। उस ओघ उत्कृष्टका निक्षेपका प्रमाण क्या है ऐसी आशंका होनेपर उसके प्रमाणका अवधारण करनेके लिये आगेके सूत्रको कहते हैं * पुनः उत्कृष्ट निक्षेपका प्रमाण कितना है।

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