Book Title: Kasaypahudam Part 14
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh

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Page 339
________________ २९८ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे वाइच्छावणाणं पमाणावहारणं कादण ओकड्डणविसयाणं च तेसि सुगमत्ताहिप्पारण परूवणमकाऊण संपहि एदेसिं चेव पदाणमोकड्डणविसयाणं थोवबहुत्तजाणावण?मुवरिमं पबंधमाह उक्कड्डिज्जमाणियाए द्विदीए जहण्णगो णिक्खेवो थोवो । * ३६९. किं कारणं ? आवलियाए असंखेज्जदिमागपमाणत्तादो । * ओकड्डिजमाणियाए हिदीए जहण्णगो णिक्खेवो असंखेजगुणो। $३७० किं कारणं ? आवलियतिभागपमाणत्तादो।। * ओकडिजमाणियाए हिदीए जहणिया अधिच्छावणा थोवणा दुगुणा। $ ३७१. कुदो ? समयूणावलियाए वेत्तिभागपमाणत्तादो, पुग्विल्लो समयूणावलियाए तिभागो समयुत्तरो। एदे वुण समयूणावलियाए वेत्तिभागा तेणेसा जइण्णाइच्छावणा दुरूवणदु गुणा होदूण विसेसाहिया जादा ति एसो एदस्स सुत्तस्स भावत्थो । ओकडिजमाणियाए हिदीए उक्कस्सिया अइच्छावणा णिवाघादेण तथा अतिस्थापनाके प्रमाणका अवधारण करके अब अपकर्षणविषयक उनका सुगमतारूप अभिप्रायसे प्ररूपणा नहीं करके अब उत्कर्षण और अपकर्षणविषयक इन्हीं पदोंके अल्पबहुत्वका ज्ञान करानेके लिए आगेके प्रबन्धको कहते हैं * उत्कर्षित की जानेवाली स्थितिका जघन्य निक्षेप सबसे थोड़ा है। $ ३६९. क्योंकि बह आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। * उससे अपकर्षित की जानेवाली स्थितिका जघन्य निक्षेप असंख्यातगुणा है। $ ३७०. क्योंकि वह आवलिके त्रिभागप्रमाण है । विशेषार्थ–एक समय कम एक आवलिके तीन भाग करे। पुनः एक त्रिभागमें एक मिला दे। इतना अपकर्षित की जानेवाली स्थितिके जघन्य निक्षेपका प्रमाण होता है जो उत्कर्षित की जानेवाली स्थितिके जघन्य निक्षेप आवलिके असंख्यातवें भागसे नियमसे असंख्यातगुणा होता है ऐसा यहाँ समझना चाहिये। * उससे अपकर्षित की जानेवाली स्थितिकी जघन्य अतिस्थापना कुछ कम दूनी है। ६ ३७१. क्योंकि वह एक समय कम एक आवलिके दो-तीन भागप्रमाण है। यतः अनन्तर पूर्व कहा गया निक्षेप एक समय कम एक आवलिके समयाधिक त्रिभागप्रमाण है और यह काल एक समय कम एक आवलिके दो-तीन भागप्रमाण है, इसलिए यह जघन्य अतिस्थापना दो कम दूनी होकर पूर्वोक्तसे विशेष अधिक हो गई है यह इस सूत्रका भावार्थ है। * उससे अपकर्षित की जानेवाली स्थितिकी उत्कृष्ट अतिस्थापना तथा निर्व्या

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