Book Title: Kasaypahudam Part 14
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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भाग-14
खवगसेढीए तदियमूलगाहाए तदियभासगाहा
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* तं जहा ।
६ ३४८. सुगमं ।
(१०३) एक्कं च द्विदिविसेसं तु असंखेज्जेसु ट्ठिदिविसेसेसु । वढ े दि हरस्सेदि च तहाणुभागेसणंतेसु || १५६॥ $ ३४९. एदी मासगाहाए पुव्विल्लपुच्छाणं सव्वासिमेव णिण्णयविहाणं कदं दट्ठव्वं । तं जहा – 'एक्कं च ट्ठिदिविसेसं' एवं भणिदे एगं द्विदिविसेसमुक्कड्डेमाणो णियमा असंखेज्जेसु ट्ठिदिविसेसेसु बढे दि ति । एदेण जहण्णदो वि आवलियाए असंखेज्जदिभागमेत्तो चेव उक्कड्डणाए णिक्खेवविसओ होदि, णो हेट्ठा त्ति जाणाविदं । तहा एक्कं च द्विदिविसेसमो कड्डेमाणो णियमा असंखेज्जेसु विदिविसेसेसु रहस्सेदि, णो हेट्ठा ति एदेण वि विदिएण सुत्तावयवेण जहण्णदो वि ओकड्डेणाए आवलियतिभागमेत्तेण णिक्खेवेण होदव्वमिदि जाणाविदं । ' तहाणुभागेसणंतेसु' एवं भणिदे एगमणुभागद्दय वग्गणमुक्कड्डेमाणो ओकड्डेमाणो च णियमा अनंतेसु चैवाणुभागफहसु वहृदि हस्सेदि चेत्ति भणिदं होदि । एदेण अणुभागविसयाणमोकड्डुक्कड्डणाणं जहण्णुक्कस्सणिक्खेवपमाणावहारणं कयं । संपहि एवमेदेसु अत्थविसेसेसु पडिबद्धाए एदिस्से भासगाहाए ट्ठिदिविसयमुक्कड्डणं चेव पहाणमावेण पृच्छावाक्यको कहते हैं । * वह जैसे ।
$ ३४८. यह सूत्र सुगम है ।
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(१०३) एक स्थितिविशेषको असंख्यात स्थितिविशेषोंमें बढ़ाता और घटाता तथा एक स्पर्धकविषयक वर्गणाको अनन्त अनुभागविषयक स्पर्धकोंमें बढ़ाता और घटाता है ॥ १५६ ॥
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$ ३४९. इस भाष्यगाथा द्वारा पहलेकी सभी पृच्छाओंके निर्णयका विधान किया गया जानना चाहिये । वह जैसे – 'एकं च द्विदिविसेसं' ऐसा कहनेपर एक स्थितिविशेषका उत्कर्षण करता हुआ नियमसे उसे असंख्यात स्थितिविशेषोंमें बढ़ाता है । जघन्यरूपसे भी आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण ही उत्कर्षण में निक्षेपका विषय होता है, कम नहीं यह इस सूत्र द्वारा जताया गया है । तथा एक स्थितिविशेषको अपकर्षित करता हुआ उसे नियमसे असंख्यात स्थितिविशेषों में घटाता है, इससे कम नहीं, इस प्रकार इस दूसरे सूत्रपाद द्वारा भी अपकर्षणमें एक आवलिका त्रिभागमात्र निक्षेप होना चाहिये यह ज्ञान कराया गया है । ' तहाणुभागेसणंतेसु' ऐसा कहने पर एक स्पर्धककी वर्गणाको उत्कर्षित और अपकर्षित करता हुआ उसे नियमसे अनन्त अनुभाग-स्पर्धकोंमें बढ़ाता और घटाता है यह कहा गया है। इस वचन द्वारा अनुभागविषयक अपकर्षण और उत्कर्षणके जघन्य और उत्कृष्ट निक्षेपके प्रमाणका अवधारण किया गया है । अब इस प्रकार इन अर्थविशेषोंमें निबद्ध हुई इस भाष्यगाथाके स्थितिविषयक उत्कर्षणको
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