Book Title: Kasaypahudam Part 14
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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खवगसेढीए पंचममूलगाहाए पढमभासगाहा
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कीरमाण संसारावत्थाए उक्कस्सणिक्खेवपमाणाणुगमो एसो असंबद्धो ति ? किं कारणं ? ओकड्डणसंबंधेण पसंगागदाए तप्परूवाणाए: दोसाणुवलंभादो ।
$ ३२९. संपद्दि एवमवहारिदपमाणाणं
जहण्णुक्कस्साइच्छावणाणिक्खेवाणं
करनी चाहिये कि क्षपश्र णिविषयक प्ररूपणा के करनेपर यहाँ संसार अवस्थाविषयक यह उत्कृष्ट निक्षेपके प्रमाणका अनुगम असम्बद्ध है, क्योंकि अपकर्षणके सम्बन्धवश प्रसंगसे प्राप्त अपकर्षणविषयक उत्कृष्ट निक्षेपकी प्ररूपणा करनेमें कोई दोष नहीं पाया जाता ।
विशेषार्थ - कल्पना में एक आवलिका प्रमाण १६ तथा चारित्रमोहनीयकी उत्कृष्ट स्थितिका प्रमाण ६५५३६ ।
जब उदयावलिसे ऊपरके प्रथम निषेकके प्रदेशपुंजका अपकर्षण होता है तब नियमानुसार एक समय कम एक आवलि १५ के त्रिभाग ५ कम दो त्रिभाग १० प्रमाण ऊपरकी स्थितिको अतिस्थापित कर प्रारम्भके १ समय अधिक त्रिभाग प्रमाण १+५ = ६ स्थितिमें उक्त १७वें समय के द्रव्यका निक्षेप होता है। इस प्रकार प्रथम उदयनिषेकसे लेकर छठवें निषेक तकके ६ निषेक निक्षेपरूप प्राप्त होते हैं और ७वें निषेकसे लेकर १६ वें तकके १० निषेक अतिस्थापनारूप प्राप्त होते हैं। तत्पश्चात् आगे-आगेके निषेकके द्रव्यका अपकर्षण करनेपर अतिस्थापनामें एकएक निषेककी वृद्धि तबतक होती जाती है जबतक एक आवलि १६ प्रमाण अतिस्थापना नहीं प्राप्त हो जाती। यहांतक निक्षेपका प्रमाण प्रारम्भके प्रथम निषेकसे लेकर छटवें निषेक तक ६ निषेक इतना ही रहता है । तथा अतिस्थापना ७वें निषेकसे क्रमसे बढ़कर रखें निषेक तक एक आवलि १६ निषेकप्रमाण हो जाती है । तत्पश्चात् उत्कृष्ट निक्षेपके प्राप्त होनेतक अतिस्थापनाका प्रमाण सर्वत्र एक आवलि १६ निषेकप्रमाण ही रहता है । मात्र उत्कृष्ट निक्षेप बन्धावलि १६, अतिस्थापनावल १६ और अग्र (अन्तिम) स्थिति १ कुल मिलाकर ३३ निषेकोंसे हीन उत्कृष्ट स्थिति ६५५०३ प्रमाण हो जाता है । यहां नये कर्मका बन्ध होनेपर बन्धावलि कालतक वह नया बन्ध तदवस्थ रहा, इसलिए एक आवलि यह कम हो गई तथा बन्धावलिके बाद अन्तिम अग्रस्थितिके द्रव्यका अपकर्षण हुआ, इसलिए अपकर्षित द्रव्यका उसी अग्रस्थितिमें निक्ष ेप होना सम्भव नहीं, इसलिए एक निषेक यह कम हो गया । तथा अग्रस्थितिके नीचे एक आवलिप्रमाण निषेक अतिस्थापनारूप हैं, अतः अपकर्षित द्रव्यका उनमें निक्षेप होना सम्भव नहीं, इसलिये एक आवलिप्रमाण निषेक ये कम हो गये । इस प्रकार कुल मिलाकर उत्कृष्ट स्थितिमेंसे बन्धावलि, अतिस्थापनावलि और अग्रस्थिति कुल ३३ निषेकों को कम करनेपर उत्कृष्ट निक्षेपका प्रमाण कल्पनामें ६५५०३ निषैक इतना प्राप्त होता है। यहां बन्धके बाद १७वें समयमें अपकर्षण हुआ है, इसलिए तो बन्धावलि सम्बन्धी प्रारम्भके १६ निषेक ये कम हो गये । तथा ६५५३६वें निषेकके द्रव्यका अपकर्षण हुआ है, इसलिए अन्तका एक यह निषेक कम हो गया । तथा ६५५२०वें निषेकसे लेकर ६५५३५ तकके १६ निषेक अतिस्थापनारूप हैं, इसलिए १६ निषेक ये कम हो गये । इस प्रकार ६५५३६ में से ३३ निषेक घटकर कुल १७वें निषेकसे लेकर ६५५१९ तकके ६५५०३ निषेकोंमें अपकर्षित द्रव्यका निक्षेप हुआ यह सिद्ध होता है । यहाँ प्रकरण चारित्रमोहनीयका है, क्योंकि चारित्रमोहनीयकी क्षपणाका निर्देश किया जा रहा है, अतः धवलाकारने संसारअवस्थाकी मुख्यतासे चारित्रमोहनीयसम्बन्धी उत्कृष्ट स्थितिकी अपेक्षा ही यह अपकर्षणसम्बम्धी नियमका निर्देश किया है । यह अव्याघातविषयक अपकर्षणसम्बन्धी कथन है इतना यहाँ विशेष जानना चाहिये ।
$ ३२९. अब इस प्रकार जिनके प्रमाणका ज्ञान करा दिया गया है ऐसे इन जघन्य और
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