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________________ २८२ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे पाणविस पुणो विणिण्णय करणट्टमुवरिममप्पाबहुअपबंधमाढवेइ— * जहण्णच णिक्खेवो थोवो | ९ ३३०. किं कारणं १ समयूणावलियतिभागस्स समयाहियस्स गहणादो । तस्स पमाणं संदिट्ठीए एत्तियमिदि घेतव्वं ६ । * जहण्णिया अइच्छावणा समयूणाए आवलियाए वेत्तिभागा विसे साहिया । $ ३३१. जहण्णाइच्छावणा समयूणावलियवे - त्तिभागपमाणा होदूण समयाहियतिभागादो पुव्विल्लादो विसेसाहिया त्ति भणिदं होदि । तत्तो दुरूवूणदुगुणपमाणतादो । तिस्से पमाणं संदिट्ठीए एत्तियमेत्तमिदि घेत्तव्वं १० । * उक्कस्सिया अइच्छावणा विसेसाहिया । ९ ३३२. कुदो ? संपुण्णावलियपमाणत्तादो १६ । * उक्कस्सआ णिक्खेवो असंखेज्जगुणो । $ ३३३. कुदो ? समयाहियदोआवलियूणकम्मट्ठिदिपमाणत्तादो । एवमेदीए पढमभासगाहाए मूलगाहापुव्वद्धो विहासिदो होदि । णवरि अणुभागविसयोकडणाए उत्कृष्ट अतिस्थापना और निक्षेपके प्रमाणके विषय में फिर भी निर्णय करनेके लिये आगेके अल्पबहुत्वप्रबन्धको आरम्भ करते हैं * जघन्य निक्षेप सबसे अल्प है । $ ३३०. क्योंकि एक समय कम आवलिके तीन भाग करके एक समय अधिक उस त्रिभागको निक्षेपरूपमें ग्रहण किया है । उसका प्रमाण अंकसंदृष्टिसे इतना अर्थात् ६ ग्रहण करना चाहिये । * जघन्य अतिस्थापना एक समय कम आवलिके दो त्रिभागप्रमाण होकर विशेषाधिक है । $ ३३१. जघन्य अतिस्थापना एक समय कम एक आवलिके दो- त्रिभागप्रमाण होकर एक समय अधिक त्रिभागप्रमाण पूर्वोक्त जघन्य निक्षेपसे विशेष अधिक है यह उक्त कथनका तात्पर्य, क्योंकि यह जघन्य अतिस्थापना जघन्य निक्षेपसे दो कम द्विगुणप्रमाण है । उसका प्रमाण संदृष्टिकी अपेक्षा इतना अर्थात् १० ग्रहण करना चाहिये । * उत्कृष्ट अतिस्थापना विशेष अधिक है । $ ३३२. क्योंकि यह सम्पूर्ण एक आवलिप्रमाण है। जिसका प्रमाण अंक संदृष्टिकी अपेक्षा १६ है । * उत्कृष्ट निक्षेप असंख्यातगुणा है । $ ३३३. क्योंकि यह एक समय अधिक दो आवलिसे हीन उत्कृष्ट कर्मस्थितिप्रमाण है । इस प्रकार इस प्रथम भाष्यगाथा द्वारा मूलगाथाके पूर्वार्धकी विभाषा सम्पन्न होती है । इतनी
SR No.090226
Book TitleKasaypahudam Part 14
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size40 MB
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