Book Title: Kasaypahudam Part 14
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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खवगसेढीए चउत्थमूलगाहाए पढमभासगाहा
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§ ३०२. सुगमं ।
* अस्सिं समए अणुभागबंधी बहुओ । से काले अनंतगुणहीणो । एवं समए समए अनंतगुणहीणो ।
३०३. अस्मिन्समये साम्प्रतिकसमय इत्यर्थः । से काले तदणंतरभाविसमय इत्यर्थः । सुगममन्यत् ।
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* एवमुदओ वि कायव्वो ।
$ ३०४. तं जहा — अस्सि समए अणुभागउदओ बहुओ । से काले अनंतगुणहोणोति । जइ वि एसो उदयविसयो अप्पाबहुअणिद्दे सो तदियमूलगाहाए चउत्थ भासगाहापुव्वद्धविहासावसरे प्ररूविदो तो वि मंदबुद्धीणं सुहावबोहणङ्कं णिहिट्ठोति ण एत्थ पुणरुत्तदोसासंका कायव्वा ।
* संकमो जाव अणुभागखंडयमुक्कीरेदि ताव तत्तिगो तत्तिगो अणुभागसंकमो । अण्णम्हि अणुभागखंडए आढत्ते अनंतगुणहीणो अणुभागसंकमी ।
$ ३०५. गयत्थमेदं सुतं । एवं पढमभासगाहाए अत्थविहासा समत्ता । * एतो विदियाए गाहाए समुक्कित्तणा ।
* जैसे ।
$ ३०२. यह सूत्र सुगम है ।
* इस समयमें अनुभागबन्ध बहुत होता है । तदनन्तर समयमें अनन्तगुणा हीन होता है । इस प्रकार समय-समय में उत्तरोत्तर अनन्तगुणा हीन होता है ।
§ ३०३. 'अस्मिन् समये' का अर्थ है साम्प्रतिक समयमें 'से काले' का अर्थ है तदनन्तर भावी समयमें। शेष कथन सुगम है ।
* इसी प्रकार अनुमागउदयका भी कथन करना चाहिये ।
$ ३०४. वह जैसे - इस समय अनुभागउदय बहुत होता है । तदनन्तर समयमें अनन्तगुणा हीन होता है । यद्यपि यह उदयविषयक अल्पबहुत्वका निर्देश तीसरी मूलगाथाकी चौथी भाष्यगाथा पूर्वार्धकी विभाषाके अवसरपर कर आये हैं तो भी मन्दबुद्धिजनोंको सुखपूर्वक ज्ञान करानेके लिये फिर भी इसका निर्देश किया है, इसलिये यहाँ पुनरुक्त दोषकी आशंका नहीं करनी चाहिये । * संक्रमके विषयमें यह व्यवस्था है कि जबतक अनुभागकाण्डकका उत्कीरण करता है तबतक उतना उतना ही अनुभागसंक्रम होता है । परन्तु अन्य अनुभागकाण्डका आरम्भ करनेपर अनन्तगुणा हीन अनुमागसंक्रम होता है ।
$ ३०५. यह सूत्र गतार्थ है । इस प्रकार प्रथम भाष्यगाथाकी अर्थविभाषा समाप्त हुई । * इससे आगे दूसरी भाष्यगाथाकी अर्थविभाषा करते हैं ।