Book Title: Kasaypahudam Part 14
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे २९९ सुगमं । (९५) बंधोदएहिं णियमा अणुभागो होदि गंतगुणहीणो ।
से काले से काले भज्जो पुण संकमो होदि ॥१४८॥
३००. एसा पढममासगाहा अणुभागविसयाणं बंधोदयसंकमाणं कालविसेसिदसत्थाणप्पाबहुअं वण्णेदि। तं कधं ? 'बंधोदएहिं०' एवं भणिदे बंधोदएहिं ताव 'णियमा' णिच्छएण अणुभागो से कालमाविओ अणंतगुणहीणो होदि ति पदसंबंधो । संपहियकालविसयादो अणुभागबंधादो से काले विसओ अणुभागबंधो विसोहिपाहम्मेणागंतगणहीणो होदि । एवमुदओ वि दहन्वो त्ति भणिदं होदि । 'मज्जो पुण संकमो होई' एवं मणिदे अणुभागसंकमो पुण अणंतगुणहीणतेण भयणिज्जो होइ । किं कारणं ? जाव अणुमागखंडयं ण पाडेदि ताव अवद्विदो चेव संकमो भवदि । अणुभागखंडए पुण पदिदे अणुमागसंकमो अणंतगुणहीणो जायदि ति तत्थ परिप्फुडमेव भयणिज्जत्तदंसणादी । संपहि एदस्सेवत्थस्स परिप्फुडीकरणमवरिमो विहासागंयो समोइण्णो
*विहासा।
३०१. सुगर्म । *जहा।
5 २९९. यह सूत्र सुगम है।
(९५) बन्ध और उदयकी अपेक्षा अनुभाग तदनन्तर तदनन्तर समयमें नियमसे अनन्तगुणा हीन होता है, परन्तु संक्रम भजनीय है ॥१४८॥
३००. यह प्रथम भाष्यगाथा काल विशेषणसे युक्त अनुभागविषयक बन्ध, उदय और संक्रमके अल्पबहुत्वका प्रतिपादन करती है।
शंका-वह कैसे?
समाधान-'बंधोदएहिं०' ऐसा कहनेपर बन्ध और उदयकी अपेक्षा तो 'णियमा' अर्थात निश्चयसे तदनन्तर कालभावी अनुभाग अनन्तगुणा हीन होता है इस प्रकार पदसम्बन्ध है। साम्प्रतिक कालविषयक अनुभागबन्धसे तदनन्तर कालको विषय करनेवाला अनुभागबन्ध विशुद्धिकी प्रधानतावश अनन्तगुणा हीन होता है। इसी प्रकार उदय भी जानना चाहिये यह उक्त कथनका तात्पर्य है। 'भज्जो पुण संकमो होई' ऐसा कहनेपर अनुभागसंक्रम अनन्तगुणे हीनपनेसे भजनीय है, क्योंकि जबतक अनुभागकाण्डकका पतन नहीं कर लेता है तबतक संक्रम अवस्थित ही होता है। परन्तु अनुभागकाण्डकका पतन होनेपर अनुभागसंक्रम अनन्तगुणा हीन हो जाता है, इसलिए उसमें भजनीयपना स्पष्ट रूपसे देखा जाता है। अब इसी अर्थको स्पष्ट करनेके लिये आगेका विभाषा ग्रन्थ अवतरित हुआ है।
अब इस माध्यगाथाकी विभाषा करते हैं। 5३०१. यह सूत्र सुगम है। १. ताप्रती 'जहा' इदं सूत्र 'सुगम' इयं टीका च द्वौ नोपलभ्यते ।