Book Title: Kasaypahudam Part 14
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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खवगसेढीए पंचममूलगाहा
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* STET! $ ३१५. सुगमं ।
( ९८ ) किं अंतरं करतो वढदि हायदि द्विदी य अणुभागे ।
विक्कमा च वढी हाणी वा केच्चिरं कालं ।। १५१ । । $ ३१६. एसा ओवट्टणमूलगाहाणं पढमा संकामयपडिबद्धसत्तमूलगाहाणमादीदो पहुडि पंचमी सुत्तगाहा किमट्टमोइण्णा ति पुच्छिदे - अंतरदुसमय कदावत्थमादिं काढूण जाव छण्णोकसायक्खवणद्धाए चरिमसमओ त्ति एदम्मि अवत्थंतरे वट्टमाणस खवगस्स डिदि - अणुभागविसयाणमोकड्डुक्कडणाणं पवत्तिक्कमजाणावढट्ठ, पुणो ओकड्डिदाणमुक्कड्डिदाणं च षदेसाणं णिरुवक्कम सरूवेणावट्ठाणकालपमाणावहारण च समोइण्णा । तं कथं ? ‘किं अंतरं करेंतो' एवं भणिदे केत्तियमेत्तमइच्छावणं करेमाणो हिदि- अणुभागे वहृदि हायदि वा किं ताव णिरुद्ध विदि-पदेसग्गमोकडमाणो उक्कड़माणो वा एगडिदिमेत्तमं तरं काढूण हेट्टिमोवरिमासेसट्ठिदीसु ओकडिदुमुक्कडितुं च लहदि, आहो अत्थि को वि अइच्छावणाणियमो त्ति भणिदं होदि । एवमणुभागविसयाणं पि ओकड्डुक्कड्डणाणं पुच्छा कायव्वा । ण केवलं खवगसेढीए चेव पयद
* जैसे ।
$ ३१५. यह सूत्र सुगम है ।
(९८) कितने अन्तरको करता हुआ यह जीव स्थिति और अनुभागको बढ़ाता अथवा घटाता है अथवा अन्तरको करता हुआ यह जीव स्थिति और अनुभागको किस प्रकार घटाता और बढ़ाता है । तथा उत्कर्षित अथवा अपकर्षित हुए प्रदेशपुंज निरूपक्रम होकर कितने कालतक अवस्थित रहते हैं ।। १५१ ।
§ ३१६. अपवर्तनासम्बन्धी मूलगाथाओंमें यह प्रथम मूलगाथा है जो संक्रामकप्रस्थापक सम्बन्ध रखनेवाली सात मूलगाथाओंमें प्रारम्भसे लेकर पांचवीं सूत्रगाथा है सो यह किसलिए अवतीर्ण हुई है ऐसा पूछनेपर कहते हैं कि अन्तर करनेके दूसरे समयसे लेकर छह नोकषायोंके क्षपणाके अन्तिम समयतक इस अवस्थाके भीतर विद्यमान हुए क्षपकके स्थिति और अनुभागविषयक अपकर्षण और उत्कर्षणकी प्रवृत्तिके क्रमका ज्ञान करानेके लिये तथा अपकर्षित और उत्कर्षित हुए प्रदेशोंके निरुपक्रमरूपसे अवस्थानकालके प्रमाणका अवधारण करनेके लिये अवतीर्ण हुई है।
शंका- वह कैसे ।
समाधान- 'किं अंतरं करेंतो' ऐसा कहनेपर कितने प्रमाणमें अतिस्थापनाको करता हुआ स्थिति और अनुभागको बढ़ाता अथवा घटाता है । क्या विवक्षित प्रदेशपुंजको अपकर्षित अथवा उत्कर्षित करता हुआ एक स्थितिमात्र अन्तर करके नीचेकी और ऊपर की समस्त स्थितियोंमें अपकर्षण और उत्कर्षण प्राप्त करता है या कोई अतिस्थापनाका नियम है यह उक्त कथनका तात्पर्य है । इसी प्रकार अनुभागविषयक अपकर्षण और उत्कर्षण के सम्बन्धमें पृच्छा करनी