Book Title: Kasaypahudam Part 14
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे ३१२. एसा तदियभासगाहा समयं पडि अणुभाग-पदेसोदयाणं पवुत्तिकर्म जाणावेदि । एदिस्से अत्थपरूवणा सुगमा । जइवि एसो अत्थो पुम्विन्लदोभासगाहाहिं चेव गहिओ तो वि मंदबुद्धीणं सुहग्गहणटुं पुणो वि भणिदो त्ति ण एत्थ पुणरुत्तदोसासंका कायव्वा । अदो चेय एदिस्से अत्थविहासा तन्विहाए चेव विहासिदा ति पदुप्पाएमाणो सुत्तमुत्तरं भणइ
* एदिस्से अत्यो पुव्वभणिदो।' |
६३१३. एदिस्से गाहाए अत्थो पुविल्लदोभासगाहासु विहासिज्जमाणासु भणिदो, तदो | एत्थ विहासिज्जदि त्ति भणिदं होदि । अधवा तदियमूलगाहाए चउत्थमासगाहत्थविहासाए चेव एदिस्से अत्थो विहासिदो, दोण्हमेदासिं गाहाणमत्थमेदाणुवलंभादो। जइ एवं, एसा गाहा गाढवेयव्वा ति णासंकणिज्जं, पुन्वमेव दत्तुत्तरत्तादो । एवं संकामणपट्ठवगस्स चउण्हं मूलगाहाणमत्थविहासा समत्ता । एत्तो तस्सेव द्विदि-अणुभागाणमोवट्टणाए पडिबद्धाणं तिण्हं मलंगाहाणमत्थविहासणं कुणमाणो सुत्तपबंधमुत्तरं मणइ
* एत्तो पंचमी मूलगाहा । तिस्से समुक्कित्तणा। ६३१४. सुगमं ।
६३१२. यह तीसरी गाथा अनुभाग उदय और प्रदेशउदयके प्रवृत्तक्रमका ज्ञान कराती है । इसको अर्थप्ररूपणा सुगम है । यद्यपि इस अर्थको पहलीकी दो गाथाओं द्वारा ही स्वीकार कर लिया गया है तो भी मन्दबुद्धि जनोंको सुखपूर्वक ज्ञान करानेके लिये फिर भी कहा है, इसलिए यहाँपर पुनरुक्त दोषकी आशंका नहीं करनी चाहिये और इसीलिये उस प्रकारसे इसकी अर्थविभाषा की गई है इस बातका कथन करते हुए आगेके सूत्रको कहते हैं___ * इस भाष्यगाथाका अर्थ पहले ही कह आये हैं।
$३१३. पहलेकी दो भाष्यगाथाओंकी विभाषा करते हुए इस भाष्यगाथाका अर्थ कह आये हैं, इसलिए यहाँपर उसकी विभाषा नहीं की जाती है यह उक्त कथनका तात्पर्य है । अथवा तीसरी मूलगाथाकी चौथी भायगाथा द्वारा विभाषा करते समय ही इसका अर्थ कह आये हैं, क्योंकि इन दोनों गाथाओंमें अर्थभेद नहीं पाया जाता।
शंका-यदि ऐसा है तो इस गाथाको आरम्भ नहीं करना चाहिये ? समाधान-ऐसी आशंका नहीं करनी चाहिए, क्योंकि इसका पहले ही उत्तर दे आये हैं।
इस प्रकार संक्रामणप्रस्थापकके चार मूलगाथाओंकी अर्थविभाषा समाप्त हुई। इससे आगे उसी जीवके स्थिति और अनुभागकी अपवर्तनासे सम्बन्ध रखनेवाली तीन मूलगाथाओंकी अर्थविभाषा करते हुए आगेके सूत्रप्रबन्धको कहते हैं
* इससे आगे पाँचवीं मूलगाथा है । उसकी समुत्कीर्तना करते हैं5 ३१४. यह सूत्र सुगम है।
१. ता०प्रतौ पुवं भणिदो इति पाठः।