Book Title: Kasaypahudam Part 14
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे हाणीए ओवट्टिज्जमाणस्स तहाभावोववत्तीए । संपहि एदस्सेवत्थस्स फुडीकरणटुं विहासागंथमुत्तरं भणइ
* विहासा।
२८५. सुगमं । * जहा। ६२८६. सुगमं ।
* से काले अणुभागबंधो थोवो । से काले चेव उदओ अणंतगुणो। अस्सिं समए बंधो अणंतगुणों । अस्सि चेव समए उदओ अणंतगुणो ।
६२८७. गाहासुत्तेण पुवाणुपुष्वीए जो अत्थो णिहिट्ठो सो चेव सुहग्गहणद्वं पच्छाणुपुवीए विहासिदो। सुगममण्णं । एवं तदियमासगाहाए अत्थपरूवणा समत्ता। संपहि अणुभाग-पदेसविसयाणमुदयाणं कालमेदमस्सियूण थोवबहुत्तपरूवणटुं चउत्थभासगाहाए अवयारं कुणमाणो इदमाह
* चउत्थीए भासगाहाए समुक्त्तिणा । $ २८८. सुगमं ।
हानिरूपसे अपवर्तित हो जाता है, इसलिये वह उस प्रकारसे बन जाता है। अब इसी अर्थको स्पष्ट करनेके लिये आगेके विभाषाग्रन्थको कहते हैं
* अब उक्त भाष्यगाथाकी विभाषा करते हैं। $ २८५. यह सूत्र सुगम है। * जैसे। ६२८६. यह सूत्र सुगम है।
* वर्तमान समयसे अनन्तर समयमें होनेवाला अनुमागबन्ध सबसे स्तोक है। उससे अनन्तर समयमें ही होनेवाला उदय अनन्तगुणा है। उससे इस समयमें होनेवाला अनुभागबन्ध अनन्तगुणा है। उससे इसी समयमें होनेवाला अनुभागउदय अनन्तगुणा है।
5२८७. उक्त गाथा द्वारा पूर्वानुपूर्वीसे जो अर्थ निर्दिष्ट किया गया है उसी अर्थका सुखपूर्वक ग्रहण करनेके लिए पश्चादानुपूर्वीसे विभाषा की गई है। शेष कथन सुगम है। इस प्रकार तीसरी भाष्यगाथाकी अर्थप्ररूपणा समाप्त हुई। अब अनुभाग और प्रदेशविषयक उदयके कालभेदके आलम्बनसे अल्पबहुत्वका कथन करनेके लिये चौथी भाष्यगाथाका अवतार करते हुए इस सूत्रको कहते हैं
* अब चौथी माष्यगाथाकी समुत्कीर्तना करते हैं । $ २८८. यह सूत्र सुगम है।