Book Title: Kasaypahudam Part 14
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयघवलासहिदे कसायपाहुडे
ताओ तिणि वि संपिंडियण गहिदमेती एदस्स मायाए पढमहिदी होदि ति णिहिठ्ठे । किं कारणमे महंती पढमट्ठिदी एत्थ जादा ति णासंकणिज्जं, एदिस्से चेव पढमट्ठिदीए अन्यंतरे तिविहं कोहं तिविहं माणं तिविहं च मायनुवसामेमाणस्स तत्तियमेत्तपढमहिदीए अविप्पडिवत्तिसिद्धत्तादो । तदो मायावेदगो चैव तिविहकोहमाणमायाओ जहाकममुवसामेदिति एदं णाणत्तमेत्थ दट्ठव्वमिदि पदुप्पायणट्टमाह -
* तदो मायं वेदेंतो कोहं च माणं च मायं च उवसामेदि । $ २५३. सुगमं ।
* तदो लोभमुवसा में तस्स णत्थि णाणतं ।
$ २५४. कुदो ! तत्थ णाणत्तेण विणा पयदपरूवणाए पवत्तिदंसणादो । एवं उवरिं चडियूण पुणो हेट्ठा ओदरमाणस्सेदस्त जो णाणत्तसंभवो तष्णिद्देसकरणटुमुत्तरसुतारंभ -
* मायाए उबट्ठियो, उवसामेयूण पुणो पडिववमाणगस्स बोमं वेदयमाणस्स णत्थि णाणत्तं ।
ध, मान और मायाकी जो प्रथम स्थितियाँ हैं उन तीनोंको मिलाकर जितना आयाम होता है। उनी यहाँ मायाकी प्रथम स्थिति होती है ऐसा यहाँ जानना चाहिये ।
शंका- यहाँपर इतने बड़े आयामवाली प्रथम स्थिति कैसे हो गई ? समाधान - ऐसी आशंका नहीं करनी चाहिये, प्रकारके क्रोध, तीन प्रकारके मान और तीन प्रकारकी आयामवाली प्रथम स्थिति बिना विवाद के सिद्ध है ।
क्योंकि इसी प्रथम स्थितिके भीतर तीन मायाको उपशमानेवाले जीवके उतने
इसलिये मायाका वेदन करनेवाला जीव ही तीन प्रकारके क्रोध, तीन प्रकारके मान और तीन प्रकारकी मायाको क्रमसे उपशमाता है इस प्रकार इस नानापनको यहाँ जानना चाहिये इस बातका कथन करनेके लिये आगेका सूत्र कहते हैं
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* इसलिए मायाका वेदन करनेवाला जीव क्रोध, मान और मायाको उपशमाता है ।
$ २५३. यह सूत्र सुगम है ।
विशेषार्थं - क्रोध के उदयसे श्रेणिपर चढ़ा हुआ जीव केवल क्रोधको उपशमाता है, मानके उदयसे श्र ेणिपर चढ़ा हुआ जीव क्रोध और मान इन दोको क्रमसे उपशमाता है तथा मायाके उदयसे श्रेणिपर चढ़ा हुआ जीव क्रमसे क्रोध, मान और मायाको उपशमाता है । एक तो इस प्रकार नानापन बन जाता है। दूसरे प्रथम स्थितिकी अपेक्षा भी यहाँ नानापन बन जाता है ।
* तत्पश्चात् लोमको उपशमानेवाले उसी जीवके नानापन नहीं है।
$ २५४. क्योंकि वहाँ नानापनके बिना प्रकृत प्ररूपणाकी प्रवृत्ति देखी जाती हैं। इस प्रकार ऊपर चढ़कर पुनः नीचे उतरनेवाले इस जीवके जो नानापन सम्भव है उसका निर्देश करनेके लिए आगे सूत्रका आरम्भ करते हैं—
* मायाकषायसे श्रेणिपर चढ़ा । पुनः कषायोंको उपशमाकर गिरकर लोमका