Book Title: Kasaypahudam Part 14
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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खवगसेढीए अणियट्टिकरणे आवासयाणि
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$ ७०. गयत्थमेदं सुत्तं । णवरि चरिमसमयापुव्वकरण मावे वट्टमाणस्स हस्सरदि-भय-दुगुंछाणं बंधवोच्छेदो जादो । तत्थेव छण्णोकसायाणमुदयवोच्छेदो वि जादो त्ति एसो अत्थो सुगमो ति सुत्तयारेण ण परूविदो ।
* से काले पढमसमयअणियही जादो ।
$ ७१ को अणियडी णाम १ निवृत्तिर्व्यावृत्तिः, परिणामानां विसदृशभावेण परिणतिरित्यनर्थान्तरम् । न विद्यते निवृत्तिरस्येत्यनिवृत्तिः । नानाजीवापेक्षयैकसमयिकानां जीवपरिणामानां मिथो व्यावृत्यभावात्प्रतिसमयमेव स्थित केकपरिणामोऽनिवृत्तिकरण इत्युक्तं भवति । सुगममन्यत् ।
* पढमसमयअणियहिस्स आवासयाणि वत्तहस्सामो ।
$ ७२. एवमणियट्टिकरणं पविट्ठस्स पढमसमए जाणि आवासयाणि संभवंति ताणि परूवसामो त्ति पहण्णावक्कमेदं ।
* तं
जहा ।
$ ७३. सुगमं ।
प्राप्त होता है ।
$ ७०. यह सूत्र गतार्थ है । इतनी विशेषता है कि अपूर्वकरणगुणस्थानके अन्तिम समयमें स्थित हुए जीवके हास्य, रति, भय और जुगुप्सा इन चार प्रकृतियोंकी बन्ध व्युच्छित्ति हो जाती है। तथा वहींपर छह नोकषायोंकी भी उदयव्युच्छित्ति हो जाती है । यतः यह अर्थ सुगम है, इसलिये सूत्रकारने इसका कथन नहीं किया ।
* तदनन्तर समयमें वह प्रथम समयवर्ती अनिवृत्तिकरणसंयत हो जाता है । ७१. अनिवृत्तिका क्या अर्थ है ?
समाधान - निवृत्तिका अर्थ व्यावृत्ति है । परिणामों की विसदृशरूपसे परिणति यह इसका तात्पर्य है । जिसके परिणामोंकी निवृत्ति अर्थात् विसदृशता नहीं पाई जाती उसका नाम अनिवृत्ति है । नाना जीवोंकी अपेक्षा एक समयवर्ती जीवपरिणामोंके परस्पर व्यावृत्तिका अभाव होनेसे प्रतिसमय होनेवाला एक-एक परिणाम अनिवृत्तिकरणसंज्ञक होता है यह उक्त कथनका तात्पर्य है । शेष कथन सुगम है ।
* अब प्रथम समयवर्ती अनिवृत्तिकरण जीवके आवश्यक बतलावेंगे ।
$ ७२. इस प्रकार अनिवृत्तिकरणमें प्रविष्ट हुए जीवके प्रथम समयमें जो आवश्यक होते हैं उन्हें बतलावेंगे इस प्रकार यह प्रतिज्ञावाक्य है ।
* वे जैसे ।
६ ७३. यह सूत्र सुगम है ।