Book Title: Kasaypahudam Part 14
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे $ १८२. एसा पंचमी भासगाहा । एदीए छसु कम्मेसु संछुद्धेसु तम्मि समये सव्वकम्माणं द्विदिसंतकम्मपमाणं परूविदं । तं जहा---'संकंतम्हि य णियमा' एवं मणिदे णोकसायछक्कम्मि पुरिसवेदचिराणसंतकम्मेण सह संछुद्धम्मि 'णियमा' णिच्छयेण 'णामा-गोदाणि वेदणीयं च' एदाणि तिण्णि वि अघादिकम्माणि 'वस्सेसु असंखेज्जेसु' असंखेज्जवस्सपमाणेसु अप्पप्पणो डिदिसंतकम्मेसु पयदि त्ति घेत्तव्वाणि। 'सेसगा होति संखेज्जे' एवं भणिदे सेसकम्माणि णाणावरणादीणि चत्तारि वि णियमा संखेज्जवस्सपमाणे द्विदिसंतकम्मे चिट्ठति त्ति घेत्तव्वं । संपहि एवंविहो एदिस्से गाहाए अवयवत्थपरामरसो सुगमो त्ति समुदायत्थमेव विहासेमाणो सुत्तमुत्तरं भणइ
___ * एसा गाहा छसु कम्मेसु पढमसमयसंकतेसु तम्हि समये ट्ठिदिसंतकम्मपमाणं भणइ
$ १८३. गयत्थमेदं सुत्तं । एवं संकामणपट्ठवगस्स चउण्हं मूलगाहाणं मज्झे पढममूलगाहाए सभासगाहाए अत्थविहासा समत्ता । संपहि विदियमूलगाहाए जहावसरपत्तमत्थविहासणं कुणमाणो सत्तपबंधमुत्तरं मणइ--
* एत्तो विदिया मुलगाहा ।
१८४. सुगमं । * तं जहा।
६१८२. यह पाँचवीं भाष्यगाथा है। इन छह कर्मोके संक्रान्त होनेपर उसी समय सब कर्मोंके स्थितिसत्कर्मका प्रमाण कहा है-'संकंतम्हि य णियमा' ऐसा कहनेपर छह नोकषायोंका पुरुषवेदके चिरकालीन सत्कर्मके साथ संक्रान्त होनेपर "णियमा' निश्चयसे 'णामा-गोद-वेदणीयं च' नाम, गोत्र और वेदनीय ये तीन अघाति कर्म 'वस्सेसु असंखेज्जेसु' असंख्यात वर्यप्रमाण अपनेअपने स्थितिसत्कर्ममें प्रवृत्त होते हैं ऐसा ग्रहण करना चाहिये । 'सेसगा होंति संखेज्जे' ऐसा कहने पर शेष ज्ञानावरणादि चारों ही कर्म नियमसे संख्यात वर्षप्रमाण स्थितिसत्कर्ममें स्थित रहते हैं ऐसा ग्रहण करना चाहिये। अब इस गाथाके अवयवोंका इस प्रकार अर्थपरामर्श सुगम है, इसलिये समुदायार्थकी ही विभाषा करते हुए आगेके सूत्रको कहते हैं
* यह गाथा छह कर्मोंके प्रथम समय संक्रान्त होनेपर उसी समय स्थितिसत्कर्म के प्रमाणका कथन करती है।
$ १८३. यह सूत्र गतार्थ है। इस प्रकार संक्रामणप्रस्थापकके चार मूल गाथाओंके मध्य में स्थित भाष्यगाथाओंके साथ प्रथम मूलगाथाकी अर्थविभाषा समाप्त हुई । अब दूसरी मूल गाथाकी अवसर प्राप्त अर्थविभाषा करते हुए आगेके सूत्रको कहते हैं
* यह दूसरी मूल गाथा है। 5 १८४. यह सूत्र सुगम है। * वह जैसे।