Book Title: Kasaypahudam Part 14
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे ६२२६. सुगमं ।
* सव्वावरणे आभिणियोहियणाणावरणादीणमणुभागं सव्वधादि वा देसघादि वा।
$ २२७. आमिणिबोहिय-सुदणाणावरणीयाणं सव्वेसु जीवेसु खओवसमलद्धिजुत्तेसु देसपादिमणुभागं मोत्तूण सव्वघादिअणुभागस्स उदओ कथं लब्भदि ति णासंकणिज्जं, तेसिमुत्तरुत्तरपयडीसु केसि पि सव्वधादिउदयसंमवमस्सियूण तहाभावसिद्धीदो। एवमोहि-मणपज्जवणाणावरणीयाणं पि देस-सव्वधादित्तेण भयणिज्जत्तं जोजेयध्वं । णवरि तेसिमुत्तरुत्तरपयडिविवक्खाए विणा वि सव्वघादित्तमुवलब्भदे, सम्वेसु जीवेसु तेसिं खओवसमणियमाभावादो । अंतराइयपयडीणं पि एसो अत्थो जाणिय वत्तव्यो ।
* कसाये चउण्हं कसायाणमणदरं ।
असातावेदनीयका वेदन करता है।
5 २२६. यह सूत्र सुगम है।
* 'सव्वावरणे' इस पदकी विभाषा-आमिनिबोधिक ज्ञानावरणादिके सर्वघाति अनुभागका वेदन करता है अथवा देशघाति अनुभागका वेदन करता है।
६ २२७. शंका-सब जीवोंके आभिनिबोधिक ज्ञानावरण और श्रुतज्ञानावरणकी क्षयोपशम लब्धिसे संयुक्त होनेपर देशघाति अनुभागको छोड़कर सर्वघाति अनुभागका उदय कैसे सम्भव है ?
समाधान-ऐसी आशंका नहीं करनी चाहिये, क्योंकि उन जीवोंके उत्तरोत्तर प्रकृतियोंमेंसे किन्हीं प्रकृतियोंके सर्वघाति अनुभागका उदय सम्भव है इस अपेक्षा उक्त भावकी सिद्धि होती है।
इसी प्रकार अवधिज्ञानावरण और मनःपर्ययज्ञानावरणके भी देशघाति और सर्वघातिपनेसे भजनीयताकी योजना करनी चाहिये। इतनी विशेषता है कि उनके उत्तरोत्तर प्रकृतियोंकी विवक्षा के बिना भी सर्वघातिपना उपलब्ध होता है, क्योंकि सब जीवोंमें उनके क्षवोपशमका नियम नहीं उपलब्ध होता । अन्तराय प्रकृतियोंका भी यह अर्थ जानकर कहना चाहिये ।
विशेषार्थ-आभिनिबोधिक ज्ञानावरण और श्रुतज्ञानावरणके उत्तर भेदोंमेंसे प्रारम्भकी एकसे लेकर जितनी अवान्तर प्रकृतियोंका क्षयोपशम होता है उनसे आगेकी प्रकृतिवोंके सर्वघाति स्पर्धकोंका नियमसे उदय बना रहता है। पांच अन्तराय कर्मोंके विषयमें भी इसीप्रकार जान लेना चाहिये। किन्तु अवधिज्ञानावरण और मनःपर्ययज्ञानावरणका क्षयोपशम जिन जीवोंके नहीं पाया जाता है उनके उत्तरोत्तर प्रकृतियोंकी दिवक्षा किये बिना ही पूरे सर्वघाति स्पर्धकोंका उदय बना रहना सम्भव है। मात्र जिन जीवोंके इन कर्मोंका जितने अंशमें क्षयोपशम होता है उनके उससे आगेके इन कर्मोके सर्वघाति अनुभागका उदय बना रहता है यह उक्त कथनका तात्पर्य है।
* 'कसाये इस पदकी विभाषा-चार संज्वलन कषायोंमेंसे किसी एकका वेदन करता है।