Book Title: Kasaypahudam Part 14
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयघवलासहिदे कसायपाहुडे
$ २३२· एसा पढमगाहा संकामयपट्टवगस्स अंतरदुसमयकदावत्थाए वट्टमाणस्स आणुपुव्वीसंकर्म लोभस्मासंकमं च परूवेह | संपहि एदिस्से गाहाए अवयवत्थपरूवणा सुगमा ति समुदायत्थमेव विहासेमाणो उवरिमं सुत्तपबंधमाह-
* विभासा ।
२४८
$ २३३. सुगमं ।
* तं जहा ।
$ २३४. सुगमं ।
* अंतरदुसमयकदप्पटुडि मोहणीयस्स आणुपुव्वीसंकमो ।
$ २३५. सुगमं ।
* आणुपुव्वीसंकमो णाम किं ?
$ २३६. सुगमं ।
* कोह- माण- माया लोभा एसा परिवाडी आणुपुव्वीसंकमो णाम । $ २३७. एदीए पयडिपरिवाडीए जो संकमो पडिलोमसंकमविरहलक्खणो तस्स आणुपुव्वीसंकमण्णा त्ति भणिदं होइ । एसा परिवाडी गाहासुतेणेदेणाणुवहट्ठा कथं जाणिज्जदित्ति आसंकाए इदमाह-
लोभ कषायका नियमसे संक्रम नहीं होता ऐसा जानना चाहिये ||१३६॥
$ २३२. अन्तर करनेके बाद दूसरे समयमें विद्यमान संक्रामक प्रस्थापकके यह प्रथम भाष्य गाथा आनुपूर्वी संक्रमका और लोभकषायके असंक्रमका कथन करती है । अब इस गाथाके अवयवोंकी अर्थप्ररूपणा सुगम है, इसलिये समुच्चयरूप अर्थकी ही विभाषा करते हुए आगे सूत्रप्रबन्धको कहते हैं
* उक्त भाष्यगाथाकी विभाषा ।
$ २३३. यह सूत्र सुगम है । * वह जैसे ।
२३४. यह सूत्र सुगम है ।
* अन्तर कर लेनेके दूसरे समयसे लेकर मोहनीय कर्मका आनुपूर्वी संक्रम होता है ।
$ २३५. यह सूत्र सुगम है ।
* आनुपूर्वी संक्रम क्या है ।
$ २३६. यह सूत्र सुगम है ।
* क्रोध, मान, माया और लोम यह परिपाटी आनुपूर्वी संक्रम है ।
$ २३७. प्रकृतियोंकी इस परिपाटीके अनुसार प्रतिलोम संक्रमके अभाव लक्षणवाला जो
क्रम होता है उसकी आनुपूर्वी संक्रम संज्ञा है यह उक्त कथनका तात्पर्य है । यह गाथासूत्र द्वारा