Book Title: Kasaypahudam Part 14
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
$ २५५. एदेण सुत्तेण गाहापुव्वद्धमस्सियूण उकडणासंकमस्स पच्चग्गबंधस्स
अग्गट्ठिदी मज्जादाभावेण णिद्दिट्ठा ।
२५६
* एसा पुरिमद्धस्स विहासा ।
$ २५६. सुगमं ।
* पच्छिमद्धस्स विहासा ।
$ २५७. सुगमं ।
* त जहा ।
$ २५८. सुगमं ।
* जं बंधदि द्विदिं तिस्से वा ततो हीणाए वा संछुहदि ।
$ २५९. एदेण सुत्तेण 'बंघेण हीणदरगे' इच्चेदं सुत्तावयवमस्सियूण गाहा - पुण्वद्धवद्विदत्थसंभालणपुरस्सरं बंधगट्ठिदीदो हेट्ठिमासु वि आवाहाबाहिरट्ठिदीसु उक्कड्डणासंकमस्त पवनिविसेसो जाणाविदो । सेसं सुगमं ।
* अबज्झमाणासु द्विदीसु ण उक्कडिज्जदि ।
$ २६०. एदेण सुत्तेण 'अहिए वा संकमो णत्थि ' त्ति एदं गाहासुत्तस्स चरिमावयवमस्सियूण बंधगट्ठिदीदो उवरिमासु अबज्झमाणट्ठिदीसु हेट्ठिमासु च 'वा' सहचि
$ २५५. इस सूत्र द्वारा गाथासूत्र के पूर्वार्धका आलम्बन लेकर उत्कर्षण संक्रमकी अपेआ नवीन बन्धकी अग्रस्थिति मर्यादारूपसे निर्दिष्ट की गई है।
* यह गाथासूत्रके पूर्वार्धकी विभाषा है ।
$ २५६. यह सूत्र सुगम है ।
* अब उत्तराधका विभाषा करते हैं ।
$ २५७. यह सूत्र सुगम है । * वह जैसे ।
$ २५८. यह सूत्र सुगम है ।
* जिस स्थितिको बाँधता है उसमें अथवा उससे हीन स्थितिमें संक्रमित करता है ।
$ २५९. इस सूत्र द्वारा 'बंधेण हीणदरगे' इस प्रकार सूत्रके इस अवयवका आलम्बन लेकर गाथाके पूर्वार्धमें अवस्थित अर्थकी सम्हाल करनेके साथ बन्धस्थितिसे अबाधाबाह्य अस्तन स्थितियोंमें भी उत्कर्षण संक्रमकी प्रवृत्तिविशेषका ज्ञान कराया गया है । शेष कथन सुगम है ।
* मात्र अवध्यमान स्थितियोंमें उत्कर्षण करके निक्षित नहीं करता है।
$ २६०. इस सूत्र द्वारा ‘अहियं वा संकमो णत्थि' इस प्रकार गाथासूत्रके इस अन्तिम अवयवका आलम्बन लेकर बन्धस्थितिसे ऊपरकी अबध्यमान स्थितियोंमें और 'वा' शब्द