Book Title: Kasaypahudam Part 14
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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खवगसेढीए विदियमूलगाहाए छट्ठभासगाहा
२४७ ६२२८. वेदेज्जत्ति सव्वत्थ अहियारसंबंधो कायव्यो। सेसं सुगम । एवमेदेसि भयणिज्जत्तं परूविय संपहि एदं चेव भयणिज्जत्तमुवसंहारमुहेण फुडीकरेमाणो सुत्तमुत्तरं भणइ
* एवं भजिदव्वो वेदे च वेदणीये सव्वावरणे कसाये च ।
६ २२९. गयत्थमेदं सुत्तं । एवमेदीए मग्गणाए समत्ताए तदो बिदियमूलगाहाए विदियो अत्थो दोसु भासगाहासु पडिबद्धो समप्पदि त्ति जाणावेमाणो सुत्तमुत्तरं भणइ
* विदियाए मुलगाहाए विदियो अत्यो समत्तो भवदि ।
5 २३०. सुगमं । संपहि मूलगाहापच्छद्धमवलंबिय तदियमत्थं विहासिदुकामो तत्थ ताव छण्हं भासगाहाणमत्थिनपरूवणट्ठमाह
® तदिये अत्थे छुब्भासगाहाओ ।
5 २३१. सुगममेदं । एवमेत्थ छण्हं भासगाहाणमत्थित्वं पइण्णाय ताओ बहाकम विहासेमाणो पढमगाहाए ताव अवयारं कुणइ(८३) सव्वस्स मोहणीयस्स आणुपुव्वी य संकमो होदि ।
लोभकसाये णियमा असंकमो होइ णायव्वो ॥१३६॥ ६२२८. 'वेदेज्ज' इस पदका सर्वत्र अधिकारके अनुसार सम्बन्ध करना चाहिये । शेष कथन सुगम है। इस प्रकार इन कर्मोके भजनीयपनेका कथन करके अब इसी भजनीयपनेका उपसंहार करनेके साथ उसे स्पष्ट करते हुए आगेके सूत्रको कहते हैं
* इस प्रकार वेदोंको, वेदनीयके दोनों मेदोंको, सर्वावरण कर्मोंको और कषायोंको भजनीय करना चाहिये ।
१२२९. यह सूत्र गतार्थ है। इस प्रकार इस मार्गणाके समाप्त होनेपर दूसरी मूल गाथाका दो भाष्यगाथाओंसे सम्बन्ध रखनेवाला दूसरा अर्थ समाप्त होता है इस बातका ज्ञान कराते हुए आगेके सूत्रको कहते हैं
* इस प्रकार दूसरी मूलगाथाका दूसरा अर्थ समाप्त होता है।
६२३०. यह सूत्र सुगम है। अब मूलगाथाके उत्तरार्धका अवलम्बन करके तीसरे अर्थको विभाषा करनेकी इच्छासे सर्वप्रथम छह भाष्यगाथाओंके अस्तित्वका कथन करनेके लिये आगेका सूत्र कहते हैं
* तीसरे अर्थमें छह माष्यगाथाएँ हैं ।
६२३१. यह सूत्र सुगम है। इस प्रकार यहाँपर छह भाष्यगाथाओंके अस्तित्वकी प्रतिज्ञा करके उनका मसे व्याख्यान करते हुए प्रथम भाष्यगाथाका अवतार करते हैं
(८३) यहाँसे लेकर सम्पूर्ण मोहनीय कर्मका आनुपूर्वी संक्रम होता है तथा