Book Title: Kasaypahudam Part 14
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुड दएण सेढिसमारोहणे विरोहाभावादो। 'वेदणीये' एवं भणिदे वेदणीयम्मि सादासादाणमण्णदरोदएण भजियव्वो त्ति वुत्तं होइ । 'सव्वावरणे' ति व त्ते आभिणिबोहियणाणावरणादीणं जेसि सव्वधादिफद्दयाणि देसघादिफद्दयाणि च अस्थि ते वेदेमाणो भयणिज्जो, सिया सव्वघादि वा वेदेदि, सिया देसघादि वा एदेसिमणभागं वा वेदेदि त्ति । किं कारणं ? तेसिमुक्कस्सखओवसमेणे परिणदम्मि णियमा देसघादिअणुभागोदयदंसणादो, अण्णत्थ सव्वघादिअणुभागोदयदसणादो । सेसं जाणिय जोजेयव्वं । जेसिं पुण देसघादिफद्दयाणि णत्थि तेसिं सबघादीणं चेव वेदगो होदि ति णिच्छेयन्वं, तत्थ भयणासंभवादो। ण च एसो अत्यो सुत्ते णत्थि, 'अभज्जगो सेसगो होदि' त्ति चरिमावयवेण परिप्फुडमेव तण्णिदेसदसणादो।
5२२१. 'कसाए च भयणिज्जो वेदेतो' त्ति भणिदे चदुण्हं संजलणकसायाणमण्णदरस्स उदएण भजियचो त्ति सुत्तत्थो, चदुण्हमेदेसिमण्णदरोदयेण सेढिसमारोहणे पडिसेहाभावादो। 'अभज्जगो सेसगो' एवं भणिदे वृत्तसेसाणं पयडीणमणुभागाणं
आदिमेंसे किसी एक वेदके उदयसे श्रेणिका आरोहण करनेमें विरोधका अभाव है। 'वेदणीये' ऐसा कहनेपर वेदनीयके साता और असातामेंसे कोई एक उदयकी अपेक्षा भजनीय है यह उक्त कथनका तात्पर्य है। 'सव्वावरणे' ऐसा कहनेपर आभिनिबोधिक आदि जिन कर्मोके सर्वघातिस्पर्धक हैं और देशघातिस्पर्धक हैं उनका वेदन करता हआ भजनीय है. कदाचित सर्वघातिस्पर्धकोंका वेदन करता है और कदाचित् देशघातिस्पर्धकोंका वेदन करता है, क्योंकि उनके उत्कृष्ट क्षयोपशमरूपसे परिणत होनेपर नियमसे देशघाति अनुभागका उदय देखा जाता है तथा अन्य अवस्थामें सर्ववाति अनुभागका उदय देखा जाता है। शेष जानकर योजना करनी चाहिये । परन्तु जिन कर्मों के देशघाति स्पक्षक नहीं होते उनके सर्वघाति स्वर्धकोंका ही वेदक होता है ऐसा निश्चय करना चाहिये, गोंकि उन कर्मोके उदयमें भजनीयपना सम्भव नहीं है । यदि कहा जाय कि यह अर्थ सूत्रमें निबद्ध नहीं है तो ऐसा कहना भी योग्य नहीं है, क्योंकि 'अभज्जगो सेसगो होइ' इस अन्तिम पद द्वारा स्पष्टरूपसे उक्त कथनका निर्देश देखा जाता है।
विशेषार्थ--आभिनिबोधिक आदि चार ज्ञानावरणोंमेंमें जहाँ जिस कर्मका उत्कृष्ट क्षयोपशम ता है वहाँ पर उस-उस कर्मसम्बन्धी देशघाति स्पर्धकोंका ही उदय रहता है और जहां विवक्षित कर्मका उत्कृष्ट क्षयोपशम नहीं होता वहाँपर उस कर्मके देशघातिस्पर्धकोंके उदयके साथ सर्वघाति स्पर्धकोंका भी उदय रहता है, क्योंकि विवक्षित क्षयोपशमसम्बन्धी सर्वघाती स्पर्धकोंको छोड़कर उसके अन्य अविवक्षित क्षयोपशम ज्ञानोंसम्बन्धी सर्वघाती स्पर्धकोंका उदय बना रहता है। यह 'सव्वावरणे भवणिज्जो इस भाष्यगाथाके अंशका तात्पर्य है । शेष कथन सुगम है।
$ २२१. 'कसाये च भयणिज्जो देतो' ऐसा कहनेपर चार संज्वलनोंमेंसे अन्यतरके उदयसे भजनीय है यह इस सत्रका अर्थ है, क्योंकि इन चारोंमेंसे किसी एकके उदयसे श्रेणिका आरोहण करनेमें कोई निषेध नहीं है। 'अभज्जगो सेसगो' ऐसा कहनेपर उक्त शेष प्रकृतियोंका और उनके
१. आ० ताप्रत्योः-मुक्कसओ खओवसमेण इति पाठः ।