Book Title: Kasaypahudam Part 14
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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खवगसेढीए विदियमूलगाहा * विदिये अत्थे वे भासगाहाओ ।
६ १९३. विदिए अत्थे पडिबद्धाओ वे भासगाहाओ उवरि भणिस्समाणाओ होति त्ति वुत्तं होइ ।
* तदिये अत्थे छन्भासगाहाओ ।
६ १९४. तदिये अत्थे पडिबद्धाओ उवरि भणिस्समाणाओ छन्भासगाहाओ होति ति मणिदं होइ । एवमेदाओ एक्कारस भासगाहाओ विदियमूलगाहाए पडिबद्धाओ त्ति एसों एदेसि तिण्हं सुत्ताणं समुदायत्थो। मूलगाहाए बीजपदभावेण सूचिदत्थाणं विवरणे पयट्टाओ भासगाहाओ, तासि विहासिज्जमाणस्स अत्थविसेसस्स आधारभावेण द्विदा मूलगाहा त्ति सव्वत्थ वत्तव्वं । संपहि 'जहा उद्देसो तहा णिद्देसो' . त्ति णायमवलंबिय पढमस्त ताव अत्थस्स तिण्हं भासगाहाणं समुक्कित्तणं विहासणं च कुणमाणो चुण्णिसुत्तयारो इदमाह
के पढमस्स अत्थस्स तिण्हं भासगाहाणं समुकित्तणं विहासणं च एक्कदो वत्तइस्सामो।
5 १९५. समुक्कित्तणं णाम उच्चारणं विहासणं णाम विवरणं । तदो तिण्हं
का तात्पर्य है।
* दूसरे अर्थमें दो माष्यगाथाएँ आई हैं ।
$ १९३. दूसरे अर्थमें आगे कही जानेवाली दो भाष्यगाथाएँ प्रतिबद्ध हैं यह उक्त कथनका तात्पर्य है।
* तीसरे अर्थमें छह भाष्यगाएँ आई हैं।
६ १९४. तीसरे अर्थमें आगे कही जानेवाली छह भाष्यगाथाएँ प्रतिबद्ध हैं यह उक्त कथनका तात्पर्य है। इस प्रकार ये ग्यारह भाष्यगाथाएँ दूसरी मूल गाथामें प्रतिबद्ध हैं इस प्रकार यह तीन सूत्रगाथाओंका समुदायार्थ है। मूल गाथा द्वारा बीजपदरूपसे सूचित हुए अर्थोंका विशेष व्याख्यान करने में जो प्रवृत्त होती हैं उन्हें भाष्यागाथा कहते हैं तथा उनके माध्यमसे व्याख्यान किये जानेवाले अर्थविशेषके आधारभावसे जो गाथाएँ स्थित हैं उन्हें मूल गाथा कहते हैं ऐसा सर्वत्र कथन करना चाहिये। अब 'उद्देश्यके अनुसार निर्देश किया जाता है' इस न्यायका अवलम्बन लेकर सर्वप्रथम प्रथम अर्थसम्बन्धी तीन भाष्यगाथाओंकी समुत्कीर्तना और विभाषा करते हुए चूणिसूत्रकार इस सूत्रको कहते हैं
* प्रथम अर्थसम्बन्धी तीन माष्यकथाओंकी समुत्कीर्तना और विभाषाको एक साथ बतलावेंगे।
६ १९५. समुत्कीर्तनाका अर्थ उच्चारणा है। विभाषाका अर्थ विवरणविशेष--व्याख्यान
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