Book Title: Kasaypahudam Part 14
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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भाग-14
खवगसेढीए इत्थवेदक्खवणपरूवणा
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* ताधे अण्णं द्विदिखंडय मण्ण मणुभागखंडयमण्णो द्विदिबंधो च आरद्धाणि ।
$ १३२. पुव्विल्लडिदि - अणुभागखंडय -ट्ठिदिबंधाणं हेट्ठिमसमये जुगवमेव परिसमत्तित्रसेण इस्थिवेद पढमसमय काम एण एदाणि ट्ठिदिखंडयादीणि तिणि वि जुगवमात्ताणित्ति भणिदं होदि । एवमेत्तो 'पहुडि आजुत्तकिरियाए इत्थिवेदं खवेमाणस्स तक्खवजद्धाए संखेज्जदिभागे ट्ठिदिखंडय पुधत्त वा वारेण समइक्कंते तम्मि उद्देसे जो पवृत्तिविसेसो तणिद्देसकरणट्टमुत्तरमुत्तारंभो—
* तदो द्विदिखंडयपुधत्तेण इत्थिवेदक्खवणद्धाए संखेज्जदिभागे गदे णाणावरण- दंसणा वरण-अंतराइयाणं तिन्हं घादिकम्माणं संखेज्जवस्सहिदिगो बंधो ।
$ १३३. पुव्वमेदेसिं कम्माणं ट्ठिदिबंधो असंखेज्जवस्सिओ होदूणासंखेज्ज - गुणहाणीए पयट्टमाणो एत्थुद्दे से संखेज्ज्रवस्ससहस्सपमाणो जादो त भणिदं होइ । एवमेत्थुद्दे से संखेज्जवस्सियमेदेसिं ट्ठिदिबंधं काढूण उवरि चडमाणस्स संखेज्जसहस्समेठिदिखंडयवावारेण इत्थवेदकखवणाए सेसा संखेज्जा भागा गदा ताधे इत्थि - वेदस्स चरिमट्ठिदिखंडय मागाएमाणो एदेण कमेणागाएदि ति जाणावणट्ठमुत्तरसुत्तावयारो
* उस समय अन्य स्थितिकाण्डक, अन्य अनुभागकाण्डक और अन्य स्थितिबन्ध आरम्भ करता है ।
$ १३२. पूर्वके स्थितिकाण्डक, अनुभागकाण्डक और स्थितिबन्धके अधस्तन समय में एक साथ ही समाप्त हो जानेके कारण स्त्रोवेदका प्रथम समयवर्ती संक्रामक जीव इन तीनों ही स्थितिकाण्ड आदिको एक साथ आरम्भ करता है यह उक्त कथनका तात्पर्य है । इस प्रकार यहाँसे लेकर आयुक्तकरण क्रियाके द्वारा स्त्रीवेदकी क्षपणा करनेवाले जीवके उसकी क्षपणा करते हुए स्थितिकाण्डक व्यापारके द्वारा संख्यातवें भाग कालके व्यतीत होतेपर उस स्थानमें जो प्रवृत्तिविशेष होता है उसका निर्देश करने के लिए आगेके सूत्रका आरम्भ करते हैं—
* तत्पश्चात् स्थितिकाण्ड कपृथक्त्वके द्वारा स्त्रीवेदकी क्षपणाके द्वारा संख्यातवें भाग कालके व्यतीत होनेपर ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अन्तराय इन तीन घातिकर्मोंका संख्यात वर्षका स्थितिवाला बन्ध होता है ।
$ १३३. पहले इन कर्मोंका स्थितिबन्ध असंख्यातवर्षकी स्थितिवाला होकर असंख्यात गुणहानि द्वारा प्रवृत्त होता हुआ इस स्थानमें संख्यात हजार वर्षप्रमाण हो जाता है यह उक्त कथनका तात्पर्य है । इस प्रकार इस स्थानमें इन कर्मोंका संख्यात वर्षप्रमाण स्थितिबन्ध करके ऊपर चढ़नेवाले जीवके संख्यात हजार स्थितिकाण्डकोंके व्यापार द्वारा स्त्रीवेदकी क्षपणाके शेष संख्यात बहुभाग जब व्यतीत हो जाते हैं उस समय स्त्रीवेदके अन्तिम स्थितिकाण्डकको ग्रहण
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