Book Title: Kasaypahudam Part 14
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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खवगसेढीए सत्तणोकसायसंकामयपरूवणा
२१७ उप्पादाणुच्छेदेण वोच्छिण्णो त्ति भणिदं होदि ।
* समयाहियाए आवलियाए सेसाए जहणिया हिदिउदीरणा ।
१५४. सुगमं । * तदो चरिमसमयसवेदो जादो । $१५५. सुबोधं । ॐ ताधे छण्णोकसाया संछुद्धा ।
$ १५६. तदवत्थाए छण्णोकसायाणं चरिमफाली संखेज्जवस्ससहस्सायामा सव्वसंकमेण संछुट्टा त्ति वुत्तं होइ । ताधे पुण पुरिसवेदस्स केत्तियं संछुद्धं केत्ति यं वा सेयमत्थि त्ति आसंकाए इदमाह---
___ * पुरिसवेदस्स जाओ दो प्रावलियाओ समयणाओ एत्तिगा समयपबद्धा विदियट्टिदीए अस्थि उदयहिदी च अस्थि । सेसं पुरिसवेदस्स संतकम्मं सव्वं संछ द्धं ।
६१५७. समयणदोआवलियमेत्तणवकबंधे असंखेज्जसमयपबद्धपमाणमुदयहिदि च मोत्तूण सेसासेसपुरिसवेदसंतकम्मं चरिमसमयसवेदेण कोहसंजलणम्सुवरि सव्वसंकमेण संछुद्धमिदि एसो एदस्स सुत्तस्स समुच्चयत्थो । मात्र शेष रहनेपर उत्पादानुच्छेदके न्यायानुसार विच्छिन्न हो जाते हैं यह उक्त कथनका तात्पर्य है।
* एक समय अधिक एक आवलि शेष रहनेपर जघन्य स्थितिउदीरणा होती है। ६ १५४. यह सूत्र सुगम है । के तत्पश्चात् क्षपक जीव अन्तिम समयवर्ती सवेदी हो जाता है । $ १५५. यह सूत्र सुबोध है। * उस समय छह नोकषाय संक्रान्त हो जाते हैं ।
$ १५६. उस अवस्थामें छह नोकषायोंकी संख्यात हजार वर्षप्रमाण आयामवाली अन्तिम फालि सर्व संक्रमण द्वारा संक्रमित हो जाती है यह उक्त कथनका तात्पर्य है। उसी समय पुरुषवेदका कितना प्रदेशपुंज संक्रान्त होता है और कितना शेष रहता है ऐसी आशंका होनेपर यह सूत्र कहते हैं
* पुरुषवेदकी जो एक समय कम दो आवलियाँ हैं इतने समयप्रबद्ध द्वितीय स्थितिमें शेष है और उदयस्थिति है। पुरुषवेदका शेष समस्त सत्कर्म संक्रान्त हो जाता है।
$ १५७. एक समय कम दो आवलिप्रमाण नवक समयप्रबद्ध और असंख्यात समयप्रबद्धप्रमाण उदयस्थितिको छोड़कर शेष समस्त पुरुषवेदसम्बन्धी सत्कर्म चरमसमयवर्ती सवेदी जीवके द्वारा क्रोधसंज्वलनके ऊपर सर्वसंक्रमरूपसे संक्रान्त कर दिया जाता है यह इस सूत्रका समु
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