Book Title: Kasaypahudam Part 14
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
तस्सेव संकामणपट्टवगस्स सुहासुहाणं कम्माणमणुभागसंतकम्मपमाणावहारणे पडिबद्धो, संकामयपट्टवगस्स पुब्वबद्धाणि कम्माणि केरिसेसु अणुभागेसु पयट्टति त्ति सुत्तस्थसंबंधावलंबणादो । 'संकतं वा असंकतं' इदि एसो सुत्तस्स तदियावयवो तस्सेव संकामणपट्टवगस्स पुव्वमेव खविदाखविदकम्माणं परूत्रणमुवेक्खदे, संकंतं खविदं, असंकंतमक्खविदमिदि सुत्तत्थावलंबणादो । अंतरकरणसमत्तीदो विदियसमयम्हि संकामणपट्टवगभावेण वट्टमाणस्स पुव्ववद्वाणं कम्माणं ट्ठिदिसंतकम्ममणुभागसंतकम्मं वा किंप्रमाणं होइ । तत्थेव वट्टमाणस्स पुव्वमेव खीणमक्खीणं वा कं कम्मं होदित्ति एसो एदस्स गाहासुत्तस्स समुदायत्थो । एवमेदीए सुत्तगाहाए पुच्छिदत्थाणं णिण्णयकरणट्ठमेत्थ पंच भासगाहाओ होंति त्ति जाणावणट्ठमुत्तरमुत्तमोइण्णं-
* एदिस्से पंचभासगाहाओ ।
$ १६३. एदिस्से अणंतरणिदिट्ठाए पढममूलगाहाए पंच भासगाहाओ होंति त्ति भणिदं होइ । भासगाहाओ त्ति वा वक्खाणगाहाओ ति वा विवरणगाहाओ ति वा एयो । संपहि ताओ कदमाओ त्ति आसंकिय पुच्छावक्कमाह
तं जहा । १६४. सुगमं ।
*
य' यह गाथासूत्र का दूसरा अवयव है जो उसी संक्रामणप्रस्थापक के शुभ और अशुभ कर्मोंके अनुभागसत्कर्मके प्रमाणके अवधारणमें प्रतिबद्ध है । इसप्रकार प्रकृत में सूत्रका अर्थके साथ सम्बन्धसम्बन्धी अवलम्बन लिया है। 'संकतं वा असंकतं' यह गाथासूत्रका तीसरा अवयव है जो उसी संक्रामणप्रस्थापकके पहले ही क्षपित हुए और क्षपित नहीं हुए कर्मोंकी प्ररूपणाकी अपेक्षा करता है । संक्रान्तका अर्थ क्षपित है । असंक्रान्तका अर्थ अक्षपित है इस प्रकार इस सूत्र वचनका अर्थके साथ अवलम्बन लिया है । अन्तरकरणकी समाप्ति के बाद दूसरे समय में संक्रामणप्रस्थापकरूपसे विद्यमान जीवके पूर्वबद्ध कर्मोंका स्थितिसत्कर्म और अनुभागसत्कर्मका कितना प्रमाण है तथा वहीं विद्यमान रहे जीवके पहले ही क्षीण हुआ और क्षीण नहीं हुआ कौन कर्म है यह इस गाथासूत्रका समुदायार्थ है । इस प्रकार इस सूत्रगाथा द्वारा पूछे गये अर्थोका निर्णय करनेके लिये इस विषयमें पाँच भाष्य गाथाएँ हैं इस बातका ज्ञान करानेके लिये आगेका सूत्र आया है
* इस सूत्रगाथाकी पाँच भाष्यगाथाएँ हैं ।
$ १६३. यह अनन्तरपूर्वं कही गई प्रथम मूल गाथाकी पाँच भाष्यगाथाएँ हैं यह उक्त कथनका तात्पर्यं है । भाष्यगाथा, व्याख्यानगाथा और विवरणगाथा • ये तीनों एकार्थक शब्द हैं । प्रकृतमें वे कौन-सी हैं ऐसी आशंका करके पृच्छावाक्य कहते हैं
* वह जैसे ।
$ १६४. यह सूत्र भी सुगम है ।
१. ता० प्रती पंच [भास] गाहाओ इति पाठः ।