Book Title: Kasaypahudam Part 14
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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खगढीए पढममूलगा हाए तदियभासगाहा
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$ १७४. एवमेदाहिं दोहिं भासगाहाहिं मूलगाहापुव्वबद्धसूचिदत्थविसेसं विहासिय संपहि तत्थ मुत्तकंठमुवइट्ठट्ठिदिसंत कम्मपमाणावहारणठ्ठे 'केसु व अणुभागेसु य' एदेण मूलगाहाविदियावयवेण समुद्दिट्ठाणुभागसंतपमाणावहारणट्टं च तदिय भास गाहाए अवयारं कुणमाणो इदमाह -
* एत्तो ट्ठिदिसंतकम्मे च अणुभागसंतकम्मे च तदियगाहा
कायव्वा ।
भाग-14
$ १७५. सुगमं ।
* तं जहा ।
$ १७६. सुगमं ।
(७४) संमाक मग पट्ठवगस्स पुव्वबद्धाणि मज्झिमट्ठिदीसु । साद- सुहणाम - गोदा तहाणुभागेसु दुक्कस्सा ॥ १२७॥
जानना चाहिये ।
विशेषार्थ - अन्तरकरणक्रिया सम्पन्न करते समय मोहनीयकमंकी नौ नोकषाय और चार संज्वलन इन तेरह प्रकृतियोंकी दो स्थितियाँ हो जाती हैं । अन्तरके पूर्वकी स्थितिका नाम प्रथम स्थिति कहलाता है और अन्तरसे ऊपरकी स्थितिका नाम द्वितीय स्थिति कहलाता है । जो जीव किसी एक वेद और किसी एक संज्वलन कषायके उदयसे श्रेणिपर आरोहण करता है उसके उन दोनों प्रकृतियोंकी प्रथम स्थिति अन्तर्मुहूर्तप्रमाण होती है और शेष ग्यारह कर्मोंकी प्रथम स्थिति एक आवलिप्रमाण होती है । अब जिसने एक आवलिप्रमाण दोनोंकी प्रथम स्थितिको गला लिया है उसके गलनेके बाद ग्यारह प्रकृतियोंकी प्रथम स्थितिका तो अभाव हो जाता है और. वेदे जानेवाले कर्मोंकी एक आवलि कम अन्तर्मुहूर्तप्रमाण प्रथम स्थिति उस समय अवशिष्ट रहती है । द्वितीय स्थिति दोनों प्रकारके कर्मोंकी पाई जाती है ऐसा इस भाष्यगाथा द्वारा सूचित किया गया है ।
$ १७४. इस प्रकार इन दोनों भाष्यगाथाओं द्वारा मूलगाथाके पूर्वार्ध द्वारा सूचित किये ये अर्थविशेषका व्याख्यान करके अब वहाँ मुक्तकण्ठसे उपदेशे गये स्थितिसत्कर्मके प्रमाणका अवधारण करनेके लिये 'केसु व अणुभागेसु य' इस मूलगाथाके द्वितीय पाद द्वारा कहे गये अनुभागसत्कर्मका अवधारण करनेके लिये तीसरी भाष्यगाथाका अवगाहन करते हुए इस सूत्र को कहते हैं* इससे आगे स्थितिसत्कर्म और अनुभागसत्कर्मके विषय में तीसरी भाष्यगाथा करनी चाहिये |
$ १७५. यह सूत्र सुगम है । वह जैसे ।
$ १७६. यह सूत्र भी सुगम है ।
(७४) संक्रामकप्रस्थापक जीवके पूर्वबद्ध कर्म मध्यम स्थितियोंमें होते हैं तथा सातावेदनीय, शुभनाम और गोत्रकर्म उत्कृष्ट अनुभागवाले होते हैं ।। १२७ ।।
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