Book Title: Kasaypahudam Part 14
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे * तदो डिदिखंडयपुत्तेण इत्थिवेवस्स जं हिदिसंतकम्मं तं सव्वमागाइदं।
5 १३४. गयत्थमेदं सुत्तं । ताधे पुण सेसाणं कम्माणं द्विदिखंडयमागाएंतो कधमागाएदि ति आसंकाए इदमाह
* सेसाणं कम्माणं हिदिसंतकम्मस्स असंखेजा भागा आगाइदा ।
$ १३५. सेसाणं कम्माणं पलिदोवमासंखेज्जभागमेत्तहिदिसंतकम्मस्स संखेज्जदिमागं परिसेसिय बहुभागा तक्कालमागाइदा त्ति सुत्तत्थो।
* तम्हि हिदिखंडए पुण्णे इत्थिवेदो संछुन्भमाणो संछुद्धो ।
६.१३६. इत्थिवेदचरिमफालीए विदियट्ठिदिसंठिदाए पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागाइदाए पुरिसवेदस्सुवरि संछुद्धाए तक्कालमित्थिवेदसंतकम्मस्स पिल्लेवाणोवलंमादो। संपहि तक्काले चेव मोहणीयस्स द्विदिसंतकम्मं घादिदावसेसं संखेज्जवस्ससहस्सपमाणं होदूण चिट्ठदि त्ति जाणावेमाणो सुत्तमुत्तरं भणइ
* ताधे चेव मोहणीयस्स हिदिसंतकम्मं संखेजाणि वस्साणि ।
करता हुआ इस क्रमसे ग्रहण करता है इस बातका ज्ञान करानेके लिये आगेके सूत्रका अवतार करते हैं
* तत्पश्चात् स्थितिकाण्डकपृथक्त्वके द्वारा स्त्रीवेदका जो स्थितिसत्कर्म है वह सब क्षपणाके लिए ग्रहण कर लिया जाता है।
६१३४. यह सूत्र गतार्थ है।
परन्तु उसी समय शेष कर्मोंके स्थितिकाण्डकको ग्रहण करता हुआ कैसे ग्रहण करता है ऐसी आशंका होनेपर इस सूत्रको कहते हैं।
* शेष कर्मोसम्बन्धी स्थितिसत्कर्मके असंख्यात बहुभागको ग्रहण करता है।
$ १३५. शेष कर्मों के पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण स्थितिसत्कर्मके संख्यातवें भागप्रमाण स्थितिसत्कर्मको छोड़कर शेष बहुभागप्रमाण स्थितिसत्कर्मको उस समय ग्रहण करता है यह इस सूत्रका अर्थ है।
* उस स्थितिकाण्डकके सम्पन्न होनेपर स्त्रीवेद संक्रमित होता हुआ संक्रान्त हो जाता है।
१३६. द्वितीय स्थितिमें स्थित पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण स्त्रीवेदकी अन्तिम फालिके पुरुषवेदके ऊपर संक्रान्त होनेपर तत्काल स्त्रीवेद सत्कर्मका अभाव उपलब्ध होता है । अब उसी समय मोहनीयकर्मका घात करनेके बाद अवशिष्ट रहा स्थितिसत्कर्म संख्यात हजार वर्षप्रमाण होता हुआ स्थित रहता है इस बातका ज्ञान कराते हुए आगेका सूत्र कहते हैं
* उसी समय मोहनीयकर्मका स्थितिसत्कर्म संख्यात वर्षप्रमाण होता है ।