Book Title: Kasaypahudam Part 14
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
View full book text
________________
उवसमसेढीए अप्पाबहुअपरूवणा
१२७ * पडिवदमाणगस्स माणवेदगद्धा विसेसाहिया। $३००. सुगमं ।
* तस्सेव पडिववमाणयस्स माणवेदगस्स णवण्हं कम्माणं गुणसेढिणिक्खेवो विसेसाहिओ।
६३०१. केत्तियमेत्तेण ? आवलियमेत्तेण । * उवसामयस्स मायावेदगद्धा विसेसाहिया । $३०२. किं कारणं ? चढमाणसंबंधित्तेण लद्धमाहप्पत्तादो। * मायाए पढमहिदी विसेसाहिया। $३०३. केत्तियमेत्तेण ? आवलियमेत्तेण । ॐ मायाए उवसामणद्धा विसेसाहिया ।
३०४. केत्तियमेत्तो विसेसो ? समयणावलियमेचो । किं कारणं ? णवकबंधोवसामणापडिबद्धसमयूणावलियाए परिप्फुडमेत्थ पवेसदसणादो।
* उवसामगस्स माणवेदगद्धा विसेसाहिया । ६३०५. केत्तियमेत्तेण ? अंतोमुहुत्तमेत्तेण ।
* गिरनेवालेका मानवेदक काल विशेष अधिक है। ६३००. यह सूत्र सुगम है। के गिरनेवाले उसी मानवेदकके नौ कर्मोंका गुणश्रेणिनिक्षेप विशेष अधिक है।
३०१. शंका-कितन समाधान-मात्र एक आवलि काल अधिक है * उपशामकका मायावेदक काल विशेष अधिक है। $३०२. क्योंकि चढ़नेवाले जीवके सम्बन्धसे यह माहात्म्य प्राप्त हुआ है।
मायाकी प्रथम स्थिति विशेष अधिक है। $ ३०३. शंका-कितनी अधिक है। समाधान मात्र एक आवलिकाल अधिक है ।
मायाका उपशामनाकाल विशेष अधिक है। ६३०४. शंका-विशेषका प्रमाण कितना है ? समाधान-विशेषका प्रमाण एक समय कम एक आवलिमात्र है। शंका-इसका क्या कारण है ? .
समाधान-नवकबन्धकी उपशामनासे सम्बन्ध रखनेवाले एक समय कम एक आवलिप्रमाण कालके इसमें स्पष्ट रूपसे प्रवेश देखा जाता है।
* उपशामकका मानवेदककाल विशेष अधिक है। ६३०५. शंका-कितना अधिक है ?