Book Title: Kasaypahudam Part 14
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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खवगसेढिजोग्गो को होदि ति णिद्देसो
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* लेस्सा त्तिविहासा । $ २१. सुगमं ।
* णियमा सुक्कलेस्सा ।
कसायद
$ २२. कुदो ? लेस्संतरविसयमुल्लंघियूण सुविसुद्धसुक्कलेस्साणिबंधणमंदतमदस वट्टमाणत्तादो । तदो चैव वडमाणो एदस्स लेस्सापरिणामो, हायमाणों चि जाणावणट्टमुत्तरसुत्तमोइण्णं
* णियमा वढमाणलेस्सा ।
९ २३. कुदो ? कसायाणुभागफड्डएसु पडिसमयमणंतगुणहीण सरूवेण उदयमागच्छमाणेसु तज्जणिदसुहलेस्सापरिणामस्स वहिं मोत्तूण हाणीए असंभवादो । * वेदो व को भवे त्तिविहासा ।
$ २४. सुगमं ।
* अण्णदरो वेदो ।
विशेषार्थ - मतिज्ञान और श्रुतज्ञानका जोड़ा है । किन्तु ध्यानकी भूमिकामें होता तो श्रुतज्ञान ही है, पर श्रुतज्ञानके मतिज्ञानपूर्वक होनेसे प्रकृतमेंसे उपदेशान्तारके अनुसार मतिज्ञान भी स्वीकार कर लिया गया है और मतिज्ञान चक्षुदर्शनोपयोग और अचक्षुदर्शनोपयोगपूर्व होता है, इसलिये कारणमें कार्यका उपचार करके उन्हें भी स्वीकार कर लिया गया है यह प्रकृत कथनका तात्पर्य है । प्रारम्भके दो शुक्लध्यानोंमें वितर्कका अर्थ श्रुतज्ञान है ऐसा सभी आचार्योंने भी स्वीकार किया है, इससे उक्त अर्थकी ही पुष्टि होती है । निर्विकल्प धर्मध्यानमें भी इसी न्यायसे विचार कर लेना चाहिये ।
* लेश्या इस पदको विभाषा । २. यह सूत्र सुगम है । * नियमसे शुक्ललेश्या होती है ।
$ २२. क्योंकि दूसरी लेश्याओंके विषयका उल्लंघन कर अत्यन्त विशुद्ध शुक्ललेश्याके कारणभूत मन्दतम कषायके उदयसे यह वर्द्धमानरूपसे होती है और इसी कारण इसका वर्धमान श्यापरिणाम होता है हीयमान नहीं इस बातका ज्ञान करानेके लिए आगेका सूत्र आया है
*
3 जो लेश्या नियमसे वर्धमान होती है ।
§ २३. क्योंकि कषायके अनुभागस्पर्धकोंके प्रत्येक समयमें अनन्तगुणे हीनरूपसे उदयमें आते रहनेपर उनसे उत्पन्न हुए शुभ लेश्यापरिणामकी वृद्धिको छोड़कर हानिका होना असम्भव है ।
* वेद कौन होता है इसकी विभाषा ।
$ २४. यह सूत्र सुगम है ।
* कोई एक वेद होता है ।
१. ता०प्रतौ य इति पाठः ।