Book Title: Kasaypahudam Part 14
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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उवसमसेढीए अप्पाबहुअपरूवणा
१३७ * तस्सेव पडिवदमाणगस्स जहण्णओ हिदिवंधो वे मासा। * उवसामगस्स माणसंजलणस्स जहण्णगो हिदिवंधो वे मासा । * पडिवदमाणयस्स तस्सेव जहण्णगो द्विविधो चत्तारि मासा । * उवसामगस्स कोहसंजलणस्स जहण्णगो डिदिबंधो चत्तारि मासा। * पडिवदमाणगस्स तस्सेव जहण्णगो ठिदिबंधो अट्ठ मासा । * उवसामगस्स परिसवेदस्स जहण्णगो ठिदिबंधो सोखस वस्साणि । * तस्समये चेव संजलणाणं ठिदिबंधो बत्तीस वस्साणि ।
* पडिवदमाणगस्स पुरिसवेदस्स जहण्णगो डिदिबंधो बत्तीस वस्साणि।
* तस्समये चेव संजलणाणं ठिदिबंधो चद्सद्विवस्साणि ।
६३४२. एदाणि सुत्ताणि सुगमाणि। णवरि सरूवणिद्देसमुहेणेव थोवबहुत्तमेदेसिं जाणाविदमिदि घेत्तव्वं, तदवगयस्स तण्णांतरीयत्तादो।
* उवसामगस्स पढमो संखेज्जवस्सहिदिगो मोहणीयस्स हिदिबंधो संखेजगुणो।
$ ३४३. कुदो ? अंतरकदपढमसमए वट्टमाणस्स उवसामगस्स संखेज्जवस्ससहस्समेत्ततक्कालाढत्तहिदिबंधस्स गहणादो।
* गिरनेवाले उसीके मायासंज्वलनका जघन्य स्थितिबन्ध दो मास है। * उपशामकके मानसंज्वलनका जघन्य स्थितिबन्ध दो मास है। * गिरनेवाले उसीके मानसंज्वलनका जघन्य स्थितिवन्ध चार मास है। * उपशामकके क्रोधसंज्वलनका जघन्य स्थितिबन्ध चार मास है । * गिरनेवाले उसीके क्रोधसंज्वलनका जघन्य स्थितिबन्ध आठ मास है। * उपशामकके पुरुषवेदका जघन्य स्थितिबन्ध सोलह वर्ष है। * उसी समय संज्वलनोंका स्थितिबन्ध बत्तीस वर्ष है।। * गिरनेवालेके पुरुषवेदका जघन्य स्थितिभन्ध बत्तीस वर्ष है। * उसी समय संज्वलनोंका स्थितिबन्ध चौंसठ वर्ष है ।
$ ३४२. ये सूत्र सुगम है । इतनी विशेषता है कि स्वरूपके निर्देशके द्वारा ही इन कर्मोके अल्पबहुत्वका ज्ञान कराया है ऐसा यहाँ ग्रहण करना चाहिये, क्योंकि उसका ज्ञान उसका अविनाभावी है।
* उपशामकके मोहनीकर्मका संख्यात वर्ष स्थितिवाला प्रथम स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है।
5 ३४३. क्योंकि अन्तर किये जानेके प्रथम समयमें स्थित उपशामकके तत्काल आरम्भ
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