Book Title: Kasaypahudam Part 14
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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भाग-14
उवसमसेढीए अप्पाबहुअपरूवणा
$ ३७१. एदाओ सुत्तगाहाओ हियये काढूण सव्वा एसा पडिवदमाणयस्स परूवणा कया । संपहि तेसिं चेव चउन्हं सुत्तगाहाणमवयवत्थपरामरसमुहेण किंवा अणुभासणं कायव्वमिदि वृत्तं होदि । सो वुण गाहासुत्ताणमवयवत्थपरामरसो सुगमो त्ति ण पुणो परूविज्जदे, जाणिदजाणावणे फलविसेसाणुवलंभादो । एवमेदासु गाहासु अणुभासिदासु तदो चरित्त मोहोवसामणाए पडिबद्धाणमदृर्ण्य सुत्तगाहाणं अत्थविहासा समता भवदि ।
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तदो उवसामणा समत्ता मवदि ।
$ ३७१. इन सूत्रगाथाओंको हृदयमें धारण करके गिरनेवाले जीवके यह सब प्ररूपणा की । अब उन्हीं चार सूत्रगाथाओंके अवयवार्थकी प्ररूपणाका अवसर होनेसे विशेष व्याख्यान करना चाहिये यह उक्त कथनका तात्पर्य है । परन्तु उन गाथासूत्रोंके अवयवार्थका विशेष परामर्श सुगम है, इसलिये पुनः प्ररूपणा नहीं करते हैं, क्योंकि जाने हुएका ज्ञान करानेमें विशेष फल नहीं पाया जाता। इस प्रकार इन गाथाओंको अनुभाषित करनेपर चारित्रमोहोपशामनासे सम्बन्ध रखनेवाली आठ सूत्रगाथाओं की अर्थविभाषा समाप्त होती है ।
विशेषार्थ - 'पडिवादो च कदिविधो' इत्यादि चार सूत्रगाथाएँ हैं जिनका यथावसर व्याख्यान कर आये हैं, इसलिए उनका यहाँ पुनः व्याख्यान नहीं किया गया है । वे गाथाएँ भाग १३, पृ० १९४ और १९५ पर देखनी चाहिये ।
इस प्रकार चारित्रमोह उपशामक नामका चौदहवाँ अर्थाधिकार समाप्त हुआ ।