Book Title: Kasaypahudam Part 14
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
View full book text
________________
१३४
जयधवलासहिदे कसायपाहुडे वस्स सत्थाणसंजमपरिणामपाहम्मेण तहामावसिद्धीए विप्पडिसेहाभावादो।
* सणमोहणीयस्स उवसंतद्धा संखेज्जगुणा ।
$ ३२८. सुगममेदं । सेढिसमारोहणादो पुव्वं पच्छा च सेढिविसयसयलकालकलावादो संखेज्जगुणं कालमुवसमसम्मत्तद्धमणुपालेदि तेणेसा संखेज्जगुणा जादा । ।
* चारित्तमोहणीयमुवसामगो अंतरं करेंतो जाओ द्विदीओ उक्कीरदि ताओ ठिदीओ संखेजगुणाओ।
$ ३२९. कुदो एदासिं चरित्तमोहणीयअंतरद्विदीणं पुम्विन्लादो संखेज्जगुणत्तं णव्वदे ? एदम्हादो चेव सुत्तादो । तम्हा सुत्तसिद्धमेवेदं पडिवज्जेयव्यं ।
* दसणमोहणीयस्स अंतरविदीयो संखेजगुणाओ ।। $ ३३०. एदं पि सुत्तसिद्धमेव गहेयव्वमिदि ण एत्थ किंचि वत्तव्यमत्थि । * जहणिया आवाहा संखेजगुणा।।
$ ३३१. एसा कत्थ गहेयव्वा ? णाणावरणादिकम्माणमुवसामगस्स सुहुमसांपराइयस्स चरिमसमये घेत्तव्वा । मोहणीयस्स पुण अणियट्टिउवसामगचरिमट्ठिदिबंधविसये गहेयन्वा । एसा च अंतरायामादो उवरि संखेज्जगुणमद्धाणं बोलेयण द्विदा त्ति एदम्हादो चेव सुत्तादो णव्वदे।। निक्षिप्त करता है, क्योंकि उसके स्वस्थान संयमरूप परिणामोंके माहात्म्यवश उस प्रकारसे सिद्धि होनेमें कोई बाधा नहीं पाई जाती है। ___ * दर्शनमोहनीयका उपशान्तकाल संख्यातगुणा है।
३२८. यह सूत्र सुगम है, क्योंकि यह श्रेणि आरोहणके पूर्व और बादमें श्रेणिविषयक समस्त कालसमूहसे संख्यातगुणे कालतक उपशमसम्यक्त्वका पालन करता है, इसलिए यह काल संख्यातगुणा हो जाता है।
__* चारित्रमोहनीयकी उपशामना करनेवाला जीव अन्तरको करता हुआ जिन स्थितियोंकी उत्कीरणा करता है वे स्थितियाँ संख्यातगुणी हैं।
____३२९. शंका-ये चारित्रमोहनीयकी अन्तरसम्बन्धी स्थितियां पूर्वके कालसे संख्यातगुणी होती हैं यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ?
समाधान -इसी सूत्रसे जाना जाता है, इसलिए इस कथनको सूत्रसिद्ध ही जानना चाहिये। * दर्शनमोहनीयकी अन्तरसम्बन्धी स्थितियाँ संख्यातगुणी हैं।
$ ३३०. इस कथनको भी सूत्रसिद्ध ही ग्रहण करना चाहिये, इसलिये इस विषयमें कुछ भी वक्तव्य नहीं है। __ * जघन्य आबाधा संख्यातगुणी है । $३३१. शंका-इसे किस स्थानकी ग्रहण करना चाहिये ?
समाधान-उपशम करनेवाले सूक्ष्मसाम्परायिक जीवके अन्तिम समयमें ज्ञानावरणादि कर्मोंकी जो आबाधा प्राप्त होती है उसे यहां ग्रहण करना चाहिये । यह अन्तरायामसे ऊपर