Book Title: Kasaypahudam Part 14
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे * आसाणं पुण गदो जदि मरदि ण सक्को णिरयगदि तिरिक्खगर्दि मणुसगर्दि वा गंतुं, णियमा देवगर्दि गच्छदि ।
___$ २२१. एदेण सुत्तेण एदस्स सासणगुणेण पडिवज्जणमरणपज्जायस्स णिरयतिरिक्खमणुसगदिसमुप्पत्तिपडिसेहेण देवगदीए चेव समुप्पादो णियामिदो दडव्यो । संपहि एदस्सेव फुडीकरणट्ठमुत्तरसुत्तं मणइ--
* हंदि तिसु आउएसु एक्केण वि बद्धेण आउगेण ण सक्को कसाये उवसामेदु।
$ २२२. कुदो १ देवाउअं मोत्तण सेसाणं तिण्हमाउआणं मज्झे एक्केण वि आउ एण बद्धेण-उवसमसेढिसमारोहणस्स अच्चंतामावेण पडिसिद्धत्तादो। एदस्स मावत्थो-- एसो परिवदमाणगो बद्धपरमवियाउगो अबद्धपरमवियाउओ वा होज्ज । तत्थ जइ ताव अबद्ध परमवियाउओ तो एदस्स एत्थ मरणसंभवो पत्थि, आउअबंघेण विणा मरणाणुववत्तीदो । अह जइ पुव्वमेव बद्धाउगो त्ति इच्छिज्जदि तो वि ण एदस्स सासणगुणेण मरणमुवगयस्स देवगई मोत्तणण्णत्थ समुप्पत्तिसंभवो । किं कारणं १ देवाउअं मोत्तूणण्णाउएण पबद्धेण संजमासंजम-संजमंगुणपडिवत्तीए अमावेण उवसमसेढिसमारोहणस्स संभवाणुवलंभादो ति ।
* परन्तु सासादनको प्राप्त हुआ यह जीव यदि मरता है तो वह नरकगति, तिर्यश्चगति अथवा मनुष्यगतिको नहीं जा सकता, नियमसे देवगतिको ही जाता है ।
5२२१. इस सूत्र द्वारा सासादनगुणके साथ जिसने पर्यायको प्राप्त किया है उसके नरक, तिर्यश्च और मनुष्यगतिमें उत्पत्तिका प्रतिषेध करके देवगतिमें ही उत्पत्तिका नियम किया गया है। अब इसी विषयको स्पष्ट करनेके लिये आगेके सूत्रको कहते हैं
___ * ऐसा नियम है कि उक्त तीन आयुओंमेंसे जिसने किसी भी एक आयुका बन्ध किया है वह कषायोंको उपशमानेके लिये समर्थ नहीं हो सकता ।
६२२२. क्योंकि देवायुको छोड़कर शेष तीन आयुओंमेंसे जिसने किसी भी एक आयुका बन्ध किया है उसका उपशमश्रेणिपर चढ़ना अत्यन्त असम्भव होनेसे उसका निषेध किया है। इसका भावार्थ यह है-यह उपशमश्रेणिसे गिरनेवाला भी बद्धपरभवायुष्क भी हो सकता है और अबद्धपरभवायुष्क भी हो सकता है। उनमेंसे यदि वह अबद्धपरभवायुष्क है तो उसका यहां सासादन गुणस्थानमें मरण सम्भव नहीं है, क्योंकि आयुका बन्ध किये बिना मरण नहीं होता । और यदि पहलेसे ही बद्धायुष्क स्वीकार किया जाता है तो भी सासादनगुणके साथ मरणंको प्राप्त हुए इस जोवकी देवगतिके सिवाय अन्यत्र उत्पत्ति सम्भव नहीं है, क्योंकि देवायुको छोड़कर बांधी गई अन्य आयुके साथ संयमासंयम और संयमगुणकी प्राप्तिका अभाव होनेसे उसका उपशमणिपर चढ़ना सम्भव नहीं है।