Book Title: Kasaypahudam Part 14
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे याणमुदीरणाकरणस्स पुव्वमेवोच्छिण्णत्तादो ओवडणाकरणमेक्कं चेव होदि त्ति दट्ठव्वं, तत्थ पयारंतराणुवलंभादो। वेदणीयस्स बंधणकरणेण वि एत्थ होदव्वं, उवसंत-खीणकसाय-सजोगीसु सादावेदणीयबंधस्स पडिसेहामावादो। तदो ओवट्टणाकरणमेक्कं चेवेत्ति दमवहारणं घडदे ? ण एस दोसो, तत्थ द्विदिबंधाभावेण तव्बंधस्साबंधसमाणत्तेण विवक्खियत्तादो। यथोक्तं—'शुष्ककुड्यपतितसिकतामुष्टिवदनन्तरसमये निवर्तते कर्मेर्यापथं वीतरागाणामिति' । 'दसकरणीसंगहे' पुण पयडिबंधसंभवमेत्तमवेक्खिय वेदणीयस्स वीयरागगुणट्ठाणेसु वि बंधणकरणमोवट्टणकरणं च दो वि माणिदाणि तिण किंचि विरुद्धं । संपहि एत्थ तिण्डं घादिकम्माणमुदीरणाकरणमोवट्टणाकरणं च जाव समयाहियावलियखीणकसायो ति, तत्तो परं तदुभयसंभवाणुवलंभादो। णामा-गोदाणमुदीरणोवट्टणाकरणाणि वेदणीयाउआणमोवट्टणाकरणं च जाव सजोगिचरिमसमओ ति । एवं गाहापुव्वद्धस्स अत्थविहासा समत्ता । संपहि एदेणेव गाहापुव्वद्धविवरणेण पच्छद्धो वि गयत्यो ति जाणावेमाणो सुत्तमुत्तरं भणइ
___ * कं करणं उवसंतं अणुवसंतं च कं करणं ति एसा सव्वा वि गाहा विहासिदा भवदि। वेदनीय कर्मसम्बन्धी उदीरणाकरण पहले ही व्युच्छिन्न हो जानेके कारण यहाँ एक अपवर्तनाकरण ही होता है ऐसा यहां जानना चाहिए, क्योंकि उन कर्मोंका यहाँ प्रकारान्तर उपलब्ध नहीं होता।
शंका-वेदनीयकर्मका बन्धनकरण भी यहां होना चाहिए, क्योंकि उपशान्तकषाय, क्षीणकषाय और सयोगी गुणस्थानोंमें सातावेदनीयके बन्धका निषेध नहीं है ? इसलिए इसका यहाँ एक अपवर्तनाकरण ही होता है ऐसा निश्चय करना घटित नहीं होता?
समाधान-यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि इन गुणस्थानोंमें स्थितिबन्धका अभाव होनेसे सातावेदनीयका बन्ध अबन्धके समान विवक्षित है। कहा भी है-शुष्क दीवालपर गिरी हुई मूठ भर धूलिके समान वीतरागोंके सातावेदनीयका ईयापथ कर्म अनन्तर समयमें ही निवृत्त हो जाता है । दशकरणीसंग्रहमें तो प्रकृतिबन्धकी सम्भावनाकी अपेक्षा करके वेदनीय कर्मके वीतराग गुणस्थानोंमे भी बन्धनकरण और अपवर्तनाकरण ये दो करण कहे गये हैं, इसलिए कुछ विरुद्ध नहीं है। यहाँ तीन घाति कर्मोके उदीरणाकरण और अपवर्तनाकरण क्षीणकषाय गुणस्थानमें एक समय अधिक एक आवलि काल शेष रहने तक होते है, उससे आगे उन दोनों करणोंकी उपलब्धि नहीं पाई जाती । नामकर्म और गोत्रकर्मके उदीरणाकरण और अपवर्तनाकरण तथा वेदनीय और आयुकर्मके अपवर्तनाकरण सयोगिकेवलोके अन्तिम समय तक होते हैं। इस प्रकार गाथाके पूर्वार्धक इसी विवरणसे उत्तरार्ध भी गतार्थ हो गया इस प्रकार इस बातका ज्ञान कराते हुए आगेका सूत्र कहते हैं
___* कौन करण उपशान्त रहता है और कौन करण अनुपशान्त रहता है इस प्रकार यह पूरी गाथा ही विभाषित हो जाती है।