Book Title: Kasaypahudam Part 14
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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उवसमसेढीदो ओदरमाणस्स परूवणा ताव पुम्विन्लस्स गुणसेढिणिक्खेवस्स गलिदसेसायामेणाणवडिदभावावहारणहमुपरिमसुत्तमाह
जाव चरिमसमयअपुव्यकरणादो त्ति सेसे सेसे णिक्खेवो । 5२१४. ओदरमाणसुहुमसांपराइयपढमसमयमादि कादण जाव चरिमसमयअपुवकरणो त्ति ताव एदम्मि अंतरे जो गुणसेढिणिक्खेवो गाणावरणादिकम्माणं पवत्तो सो गलिदसेसायामो चेव । सेसे सेसे तत्थ णिक्खेवणियमदंसणादो त्ति एसो एत्थ सुत्तत्यसमुच्चओ। णवरि मोहणीयस्स सुहुमसांपराइययप्पहुडि केत्तियं पि कालमवद्विदाणवडिदसरूवेण गुणसेढिणिक्खेवो होदण तदो गलिदसेसायामेण णाणावरणादिकम्मेहिं सरिसायामो जादो त्ति वत्तव्वं, तिसु उद्दे सेसु वढियण तत्थावद्विदगुणसेढिणिक्खेवस्स पवुत्तिदंसणादो। तं कथं ? गुहुमसांपराइयद्धाए सव्वत्थावद्विदगुणसेढिणिक्खेवो होयण पुणो फड्डयगदं लोभमोकडे माणस्स एगवारं वड्ढियूण पुणो अवडिदो जादो जाव लोमवेदगदद्धाचरिमसमओ त्ति । पुणो मायामोकडिदे माणस्स विदियवारं वढिदणावद्विदो जादो जाव सगवेदकालचरिमसमओ त्ति । तदो माणमोकडमाणस्स तदियवारं वढियण पुणो तत्तियमेत्तो चेव जाव सगवेद
करते हुए सर्वप्रथम पहलेके गुणश्रेणिनिक्षेपके गलितशेष आयामरूपसे अवस्थितपनेका अवधारण करनेके लिये आगेके सूत्रको कहते हैं
* अपूर्वकरणके अन्तिम समयतक उत्तरोत्तर शेष-शेषमें निक्षेप होता है ।
६२१४, उतरनेवाले सूक्ष्मसाम्परायिक जीवके प्रथम समयसे लेकर अपूर्वकरणके अन्तिम समयतक तो इस कालके भीतर ज्ञानावरणादि कर्मोंका जो गुणश्रेणिनिक्षेप प्रवृत्त होता है वह गलितशेष आयामवाला हो होता है, क्योंकि प्रत्येक समयमें जितनी-जितनी गणश्रोणिरचना शेष रहती जाती है उसीमें निक्षेपका नियम देखा जाता है यह यहाँ इस सूत्रका समुच्चयरूप अर्थ है। इतनी विशेषता है कि मोहनीयकर्मका सूक्ष्मसाम्पराय गुणस्थानसे लेकर कितने ही कालतक अवस्थित-अनवस्थित रूपसे गुणोणिनिक्षेप होकर तत्पश्चात् गलितशेष आयामके द्वारा ज्ञानावरणादिक कर्मोंके सदृश आयामवाला हो जाता है ऐसा कहना चाहिये, क्योंकि तीनों ही गुणस्थानोंमें बढ़कर वहाँ अवस्थित गुणश्रेणिनिक्षेपकी प्रवृत्ति देखी जाती है ।
शंका-वह कैसे?
समाधान-सूक्ष्मसाम्परायिकके कालमें सर्वत्र अवस्थित गुणश्रेणिनिक्षेप होकर पुनः स्पर्धकगत लोभका अपकर्षण करनेवालेके एक बार बढ़कर लोभवेदककालके अन्तिम समयतक पुनः अवस्थित हो जाता है। पुनः मायाका अपकर्षण करनेपर मानका दूसरी बार बढ़कर अपने वेदककालके अन्तिम समय तक अवस्थित हो जाता है। तदनन्तर मानका अपकर्षण करनेवालेके तीसरी बार बढ़कर अपने वेदककालके अन्तिम समयतक पुनः उतना ही हो जाता है। पुनः क्रोधसंज्वलनका अपकर्षण करनेपर चौथी बार बढ़कर वहाँसे लेकर उतनेवाले अपूर्वकरणके