Book Title: Kasaypahudam Part 14
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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उवसमसेढीदो ओदरमाणस्स परूवणा तदंतरं पूरेमाणो सेसकम्माणं गलिदसेसगुणसेढिणिक्खेवायामेण सरिसं गुणसेढिणिक्खेवमुदयावलियबाहिरे णिक्खिवदि ति पदुप्पाएमाणो उवरिमं सुत्तपबंधमाह___तदो संखेज्जेसु हिदिबंधसहस्सेसु गदेसु णवंसयवेदं अणुवसंतं करेदि । ताधे चेव णवंसयवेदमोकड्डियूण आवलियबाहिरे गुणसेटिं णिक्खिवदि । इदरेसिं कम्माणं गुणसेविणिक्खेवेण सरिसो गुणसेदिणिक्खेवो सेसे सेसे च णिक्खेवो।
$ १७५. गयत्थमेदं सुत्तं ।
* णqसयवेदे अणुवसंते जाव अंतरकरणद्धाणं ण पावदि एदिस्से अद्धाए संखेज्जेसु भागेसु गदेसु मोहणीयस्स असंखेज्जवस्सिओ हिदिबंधो जादो।
१७६. जम्हि उद्दसे चडमाणो अंतरकरणं कादण मोहणीयस्स संखेज्जवस्सियं द्विदिबंधं आढवेइ तमुद्दे समतोमुहुत्तेण ण पावदि त्ति एदम्हि अवत्थंतरे वट्टमाणस्सेदस्स पडिवादपाहम्मेणासंखेज्जवस्सिओ मोहणीयस्स डिदिबंधो जादो त्ति एसो एत्थ सुत्तत्थसंगहो, चडमाणसव्वद्धाहिंतो ओदरमाणसम्बद्धाणं पुव्वमेव विसेसहीणभावेण पज्जवसाणदंसणादो । तदो एत्थुवजोगिओ एसो अत्थो वत्तव्यो। तं जहाउवरि चढमाणसुहुमसांपराइयद्धा च हेट्ठा ओदरमाणसुहुमसांपराइयद्धा चेदि एवमेदाओ शेष कर्मोके गलितशेष गुणश्रेणिनिक्षेपके आयामके समान ही उदयावलिके बाहर गुणश्रेणिनिक्षेपको करता है इस बातका कथन करते हुए आगेके सूत्रप्रबन्धको कहते हैं
* पश्चात् संख्यात हजार स्थितिबन्धोंके ब्यतीत होनेपर नपुंसकवेदको अनुपशान्त करता है। उसी समय नपुंसकवेदका अपकर्णण कर आवलिबाह्य गुणश्रेणिको निक्षिप्त करता है यह गुणश्रेणिनिक्षेप शेष कर्मोंके गुणश्रेणिनिक्षेपके समान होता है तथा शेष-शेषमें निक्षेप होता है।
5 १७५. यह सूत्र गतार्थ है।
* नपुंसकवेदके अनुपशान्त होनेपर जबतक अन्तरकरणके कालको नहीं प्राप्त करता है इस कालके संख्यात भागोंके बीत जानेपर मोहनीयकर्मका असंख्यात वर्षप्रमाण स्थितिबन्ध हो जाता है।
६१७६. चढ़नेवाला जीव जिस स्थानमें अन्तरकरणको करके मोहनीयकर्मका संख्यात वर्षप्रमाण स्थितिबन्ध आरम्भ करता है उस स्थानको अन्तर्मुहूर्त द्वारा नहीं प्राप्त होता है इस अवस्थाके मध्य विद्यमान इसके प्रतिपातके माहात्म्यवश मोहनीय कर्मका असंख्यात वर्षप्रमाण स्थितिबन्ध हो जाता है यह यहाँपर सूत्रार्थका संग्रह है, क्योंकि चढ़नेवाले सम्पूर्ण कालोंसे उतरनेवालेके सम्पूर्ण कालोंका पूर्व ही विशेष हीनरूपसे अन्त देखा जाता है । इसलिये यहाँपर यह उपयोगी अर्थ कहना चाहिये । वह जैसे-ऊपर चढ़नेवालेका सूक्ष्मसाम्परायका काल और नीचे उतरने