Book Title: Kasaypahudam Part 14
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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उवसमसेढीदो ओदरमाणस्स परूवणा
द्विदिबंधो थोवो, घादिकम्माणं द्विदिबंधो असंखेज्जगुणो, णामागोदाणं द्विदिबंधो असंखेज्जगुणो, वेदणीयस्स द्विदिबंधो विसेसाहिओ ।
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$ १८०. सुगमं । संपहि एतो हेट्ठा वि एदेणेव अप्पा बहुअकमेण ट्ठिदिगंधसहस्वाणि कादृणोदरमाणस्स परूवणापगंधं सुत्ताणुसारेण वचइस्सामो-
* एदेण कमेण संखेज्जेसु द्विदिबंधसहस्सेसु गदेसु अणुभागगंधेण वीरियंतराइयं सव्वघादी जादं । तदो द्विदिबंधपुधत्तेण आभिणिबोधियणाणावरणीयं परिभोगंतराइयं च सव्वधादीणि जादाणि । तदो द्विदिबंध - पुधत्तेण चक्खुदंसणावरणीयं सव्वधादी जादं । तदो द्विदिबंधपुधत्तेण सुदणाणावरणीयमचक्खुदंसणावरणीयं भोगंतराइयं च सव्वघादीणि जादाणि । तदो द्विविगंधपुधत्तेण ओहिणाणावरणीयं ओहिदंसणावरणीयं लाभंतराइयं च सव्वघादीणि जादाणि । तदो द्विदिबंधपुधत्तेण मणपज्जवणाणावरणीयं दाणंतराइयं च सव्वधादीणि जादाणि ।
$ १८१. अणुभागगंघेण जेणेव कमेण चडमाणयस्स बारस हमेदेसिं कम्माणं अणुभागबंधस्स देसघादितं जादं तेणेव कमेण पच्छाणुपुव्वीए हेट्ठा ओदरमाणस्स
कर्मका स्थितिबन्ध सबसे थोड़ा होता है, उससे घातिकर्मोंका स्थितिबन्ध असंख्यात - गुण होता है, उससे नाम और गोत्रकर्मका स्थितिबन्ध असंख्यातगुणा होता है और उशसे वेदनीयकर्मका स्थितिबन्ध विशेष अधिक होता है ।
$ १८०, यह सूत्र सुगम है । अब यहाँसे नीचे भी इसी अल्पबहुत्वके क्रमसे हजारों स्थितिबन्धोंको करके उतरनेवालेकी प्ररूपणाके प्रबन्धको सूत्रके अनुसार बतलावेंगे ।
* इस क्रमसे संख्यात हजार स्थितिबन्धोंके जानेपर अनुभागबन्धकी अपेक्षा वीर्यान्तराय सर्वघाति हो जाता है । तत्पश्चात् स्थितिबन्धपृथक्त्व के द्वारा आभिनिबोधिकज्ञानावरणीय और परिभोगान्तराय कर्म सर्वघाति हो जाते हैं। तत्पश्चात् स्थितिबन्ध पृथक्त्वके द्वारा चक्षुदर्शनावरणीय कर्म सर्वघाति हो जाता है । तत्पचात् स्थितिबन्ध पृथक्त्वके द्वारा श्रुतज्ञानावरणीय अचक्षुदर्शनावरणीय और भोगान्तराय कर्म सर्वघाति हो जाते हैं । तत्पश्चात् स्थितिबन्ध पृथक्त्वके द्वारा अवधिज्ञानावरणीय, अवधिदर्शनावरणीय और लाभान्तराय कर्म सर्वघाति हो जाते हैं । तत्पश्चात् स्थितिबन्धपृथक्त्वके द्वारा मन:पर्ययज्ञानावरणीय और दानान्तरायकर्म सर्वघाति हो जाते हैं ।
$ १८१. चढ़नेवाले जीवके अनुभागबन्धकी अपेक्षा जिस क्रमसे इन बारह कर्मोंका अनुभागबन्घ देशघातिपने को प्राप्त हो गया था, नीचे उतरनेवाले जीवके पश्चादानुपूर्वीके अनुसार उसी