Book Title: Kasaypahudam Part 14
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे * सेसाणमाउगवज्जाणं कम्माणं गुणसेढिणिक्खेवो अणियट्टिकरणद्धावो अपुवकरणद्धादो च विसेसाहिओ, सेसे सेसे च णिक्खेवो ।
$ ११५. पुव्वमुवसंतकसायद्धाए संखेज्जभागप्पमाणो' अवट्ठिदायामो णाणावरणादिकम्माणं गुणसेढिणिक्खेवो एण्हिमोदरमाणापुव्वणियट्टिकरणद्धाहिंतो विसेसाहियायामो जादो ति वुत्तं होइ । गलिदसेसो च एसो गाणावरणादीणं गुणसेढिणिक्खेवो दट्ठव्वो ति जाणावणटुं 'सेसे सेसे च णिक्खेवो त्ति वुत्तं । उदयावलियबाहिरे गलिदसेसायामो णाणावरणादिकम्माणं उदीरणा पडिहम्मदि ताव णाणावरणादीणं पि उदयादिगुणसेढिणिक्खेवो होदि त्ति, एदं जाणिय वत्तव्वं, उदयादिगुणसेढिणिक्खेवाभावे वि असंखेज्जसमयपबद्धोदीरणाए चढमाणस्सेव संभवे विप्पडिसेहाभावादो ।
वाला होता है इस आशंकाको दूर करनेके लिये आगेके सूत्रको कहते हैं
* आयुकर्मको छोड़कर शेष कर्मोंका गुणश्रेणिनिक्षेप अनिवृत्तिकरणके कालसे और अपूर्वकरणके कालसे विशेष अधिक होता है । तथा शेष-शेषमें निक्षेप होता है।
$११५. पहले ज्ञानावरणादि कर्मोंका गुणश्रेणिनिक्षेप उपशान्तकषायके कालके संख्यातवें भागप्रमाण अवस्थित आयामवाला था इस तरह उतरनेवालेके वह अपूर्वकरण और अनिवृत्तिकरणके कालसे विशेष अधिक आयामवाला हो जाता है यह कहा गया है। ज्ञानावरणादि कर्मोंका यह गुणश्रेणिनिक्षेप गलित शेष जानना चाहिये इस बातका ज्ञान करानेके लिये शेष-शेषमें अर्थात् उत्तरोत्तर शेष रही गुणश्रेणिमें निक्षेप होता है यह कहा है। यहाँसे लेकर ज्ञानावरणादि कर्मोका उदयावलिके बाहर गलित शेष आयामवाला गुणश्रोणि निक्षेप प्रवृत्त होता है यह उक्त कथनका तात्पर्य है। यहाँ किन्हींका अभिप्राय है कि यहांसे लेकर जबतक असंख्यात समयप्रबद्धोंकी उदीरमा प्रवृत्त रहती है तबतक ज्ञानावरणादि कर्मोका भी उदयादि गुणश्रेणिनिक्षेप होता है। सो इसे जानकर कहना चाहिये, क्योंकि उदयादि गुणश्रेणिनिक्षेपके अभावमें भी चढ़नेवालेके समान असंख्यात समयप्रबद्धोंकी उदीरणाका निषेध नहीं है।
विशेषार्थ-चूणि सूत्रोंके अनुसार उपशमश्रोणिसे उतरनेवाले जीवके ज्ञानावरणादि कर्मोंका गलितशेष गुणश्रेणिनिक्षेप होता है। किन्तु किन्हीं अन्य आचार्योंके अभिप्रायसे उपशमश्रेणि चढ़ते अनिवृत्तिकरणमें जहाँसे लेकर असंख्यात समयप्रबद्धोंकी उदीरणा होने लगती है, उतरते समय भी असंख्यात समयप्रबद्धोंकी उदीरणा करते हुए जब उस स्थानतक पहुँचता है तबतक ज्ञानावरणादि कर्मोंकी उदयादि गुणश्रेणि निर्जरा होती रहती है। इस प्रकार प्रकृतमें दो अभिप्राय प्राप्त होते हैं-एक चूर्णिसूत्रकारका अभिप्राय और दूसरा अन्य किन्हीं आचार्योंका अभिप्राय। इस पर जयधवलामें जो अभिप्राय व्यक्त किया गया है उसका आशय यह है कि एक तो इसको पूर्वानुमोदित आगमसे जानकर कथन करना चाहिये । दूसरे ज्ञानावरणादि कर्मोंका उदयादि गुणश्रोणि निक्षेप न होनेपर भी चढ़नेवालेके समान उतरने वालेके असंख्यात समयप्रबद्धोंकी उदीरणा बन सकती है, उसका कोई निषेध नहीं है।
१. ता०प्रती असंखेज्जदिभागपमाणो इति पाठः ।