Book Title: Kasaypahudam Part 14
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
View full book text
________________
जयधवलासहिदे कसायपाहुडे ६६. किं कारणं ? सव्वकिट्टीणं हेहा उवरिं च असंखेज्जमागं मोत्तूण पुणो मज्झिमकिट्टीओ वेदिज्जमाणाओ भवंति । सव्वाओ चेव संकामिज्जमाणाओ भवंति, ओकड्डणासंकमस्स सव्वत्थ पडिसेहामावादो । तेण संकमो अणंतगुणो जादो। एदस्स भावत्थो-वेदिज्जमाणकिट्टीणमग्गकिट्टीदो अणंतरोवरिमअवेदिज्जमाणजहण्णकिट्टी जइ वि एगा घेप्पदि तो वि मज्झिमकिट्टीणं सव्वाणुभागादो णिच्छयेणाणंतगणा चेव भवदि । किं पुण तासि उवरिमासंखेज्जदिमागे सव्वम्मि चेव घेप्पमाणे संकमो अणंतगुणो ण होज्ज, णिच्छयेणाणंतगुणो चेव भवदि त्ति ।
* संतकम्ममणंतगुणं ।
६६७. कुदो ? फड़यसरूवेणावहिदसन्वाणुभागस्स गहणादो। एवमणुभागमस्सियूण पयदप्पाबहुअमग्गणा समत्ता। संपहि पदेसमस्सियूण तन्विहासणमुत्तरो सुत्तपबंधो___* एत्तो पदेसेण णवंसयवेवस्स पदेसउदीरणा अणक्कस्सअजहण्णा थोवा।
६६५. पदेसग्गेण अप्पाबहुए णिहाणिज्जमाणे तत्थ ताव गqसयवेदस्स अंतरदुसमयकदप्पहुडि जत्थ वा तत्थ वा णिरुद्धसमयम्मि पदेसुदीरणा असंखेज्जसमयपबद्ध
६६. क्योंकि सब कृष्टियोंमेंसे नीचेको और ऊपरकी असंख्यातवें भागप्रमाण कृष्टियोंको छोड़कर मध्यम कृष्टियों ही वेदी जाती हैं। परन्तु संक्रमित सभी कृष्टियाँ होती हैं, क्योंकि अपकषंण संक्रम सभी कृष्टियोंका होता है इसका निषेध नहीं है। इसलिए उदयउदीरणासे संक्रम अनन्नगुणा हो जाता है। इसका भावार्थ है कि वेदी जानेवाली कृष्टियोंको अग्र (उपरिम) कृष्टिकी अपेक्षा उससे अनन्तर उपरिम नहीं वेदी जानेवाली जघन्य कृष्टि यदि एक भी ग्रहण की जाती है तो भी वह मध्यम कृष्टियोंसम्बन्धी पूरे अनुभागसे अनन्तगुणा ही होता है तो क्या उन मध्यम कृष्टियोंके उपरिम भागमें स्थित असंख्यातवें भागप्रमाण सभी कृष्टियोंके ग्रहण करनेपर संक्रम अनन्तगुणा नहीं होगा, नियमसे अनन्तगुणा ही होता है।
के सत्कर्म अनन्तगुणा है।
$ ६७. क्योंकि इसमें स्पर्धकरूपसे स्थित पूरे अनुभागका ग्रहण किया है। इस प्रकार अनुभागका अवलम्बन लेकर प्रकृत अल्पबहुत्वकी मार्गणा समाप्त हुई। अब प्रदेशोंका अवलम्बन लेकर उसका खुलासा करनेके लिए आगेका सूत्रप्रबन्ध आया है
के इससे आगे प्रदेशकी अपेक्षा अल्पबहुत्व देखनेपर नपुंसकवेदकी अनुत्कृष्टअजधन्य प्रदेश उदीरणा स्तोक है।
__$ ६८. प्रदेश पुजकी अपेक्षा अल्पबहुत्व देखनेपर वहाँ सर्वप्रथम नपुसकवेदकी अपेक्षा कहते हैं-अन्तर किये जानेके दो समयसे लेकर जिस किसी विपक्षित समयमें प्रदेश उदीरणा असंख्यात समयप्रबद्धप्रमाण होकर स्तोक होती है।