Book Title: Jinvani Special issue on Acharya Hastimalji Vyaktitva evam Krutitva Visheshank 1992
Author(s): Narendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal
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प्राचार्य श्री हस्तीमलजी म. सा.
इक्यासी की आयु में, पहुँचे गाँव मंभार । निमाज गाँव तीरथ बना, ठा संथारा सार ।।. ठा संथारा सार, प्राये लाखों नर-नारी । धन-धन आकर हुए, दर्शन बने सुखकारी ॥ गंगवाल भवन का फैला, चहुँ दिशि नाम । हुई बड़ी सराहना, भंडारीजी का काम ।। ६ ॥
शुक्ल पक्ष वैसाख की, तिथि अष्टमी जानो । गजब संधारा दीपा, यह कल्याणक मानो ॥ यह कल्याणक मानो, खबर हवा में फैली । डेढ़ लाख लोगों की अंतिम झांकी रैली ॥ परम पुरुष गजेन्द्र को, वन्दन हो बारम्बार । संसार सागर तरे, जो लेवे शिक्षा धार ।। ७ ।।
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'ऋषभायतन', रोड I सी, सरदारपुरा, जोधपुर - ३४२००३
दिव्य पुंज वह 'जिनवाणी' का
अनचाहे आँखों में आया, उस दिन महा अंधेरा था, सूरज था अम्बर के पथ पर, भू पर नहीं सवेरा था । दिव्य ज्योति धरती से उठकर, दूर सभी से चली गई, महाकाल ने मानो सबके मन को आकर घेरा था ।। जहाँ-जहाँ भी चरण पड़े, वे पथ सारे ही रोते थे, रोता- रोता कहता हर पथ, हस्ती गुरु तो मेरा था । जन-मन की श्रद्धा के केन्द्र, हस्तीमल महाराज बने, इतिहासों के पन्नों पर, बन प्राया वही उजेरा था ।। मिट्टी उस निमाज नगर की, क्षरण-क्षरण महक रही है, महा सन्त का अन्तिम क्षण में, हुआ वहीं पग फेरा था । स्मृति शेष रही हस्ती की, बस्ती-बस्ती बोल रही, दिव्य पुंज वह 'जिनवाणी' का, क्या मेरा क्या तेरा था ।। संयम ले जप तप के संग, करी साधना जीवन भर । इसलिए 'आराधना' जग, उनका बना चितेरा था ।
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सीता पारीक 'प्राराधना'
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— केकड़ी रोड, बिजय नगर, अजमेर (राज.) ३०५ ६२४
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