Book Title: Jinvani Special issue on Acharya Hastimalji Vyaktitva evam Krutitva Visheshank 1992
Author(s): Narendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal
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• व्यक्तित्व एवं कृतित्व
दैविक प्रकोप को भी निवारण करने की उनमें शक्ति थी। वे विघ्न-हरण, मंगल करण थे । उनका ओज व आकर्षण इतना तेज था कि आगंतुक व्यक्ति स्वतः श्रद्धा से नत मस्तक हो जाता था । इतने बड़े जैन समाज में हर आदमी उनकी संयम-साधना व तप-त्याग से प्रभावित था। दिव्य गुणों के आगर थे, गम्भीरता के सागर थे गुरुदेव ! स्वर्गवास के बाद भी गुरुदेव के नाम-स्मरण से इतनी शक्ति मिलती है कि चिन्ता व समस्या कपूर की तरह उड़ जाती है । वे अद्भुत अतिशय सम्पन्न थे।
जीवन के अन्तिम दिनों जब निमाज में संथारे की अंतिम व महान् साधना में लीन थे, प्रतिदिन दूर-दराज से हजारों लोगों का आवागमन था पर किसी प्रकार की कोई दुर्घटना नहीं होना यह भी कम आश्चर्य की बात नहीं । उस समय निमाज का दृश्य देखने लायक था। पावापुरी बन गया था निमाज । पावापुरी क्यों न बनता जिनके रग-रग में धर्म देव का निवास था । धर्म के प्रति उनका जीवन समर्पित था ।
सं० १९६७, पौष सुदी १४ को अवतरित हुई - आत्मा सं० १९७७, माघ सुदी २ को बने
- महात्मा सं० २०४७, प्रथम बैसाख सुदी ८ को बन गए - परमात्मा
-भोपालगढ़ (जोधपुर) राज०
अमृत-करण • अन्तर में यदि सत्य, सदाचार और सुनीति का तेज
नहीं है तो बाहरी चमक-दमक सब बेकार साबित
होगी। • ज्ञानादि पूर्ण विशुद्ध गुणों का प्रकटीकरण ही परमात्मा है। आत्मा के लिए परमात्मा सजातीय है और जड़ पदार्थ विजातीय हैं । सजातीय द्रव्य के साथ रगड़ होने पर ज्योति प्रकट होती है और विजातीय के.. साथ रगड़ होने से ज्योति घटती है।
--आचार्य श्री हस्तीमलजी म. सा.
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