Book Title: Jinvani Special issue on Acharya Hastimalji Vyaktitva evam Krutitva Visheshank 1992
Author(s): Narendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal
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• व्यक्तित्व एवं कृतित्व
२. द्वापर में पुरुषोत्तम राम के समय हनुमान । ३. त्रेता में श्रीकृष्णजी के समय में भीम महाबली। ४. कलियुग में श्री हस्तीमलजी म. सा० ।
इन सभी ने अपनी मिली हुई शक्ति का स्व-पर के लिए सदुपयोग किया है । बाहुबली चाहते तो अपने भाई भरत को अपनी शक्ति से नष्ट करके सत्ता हथिया लेते, परन्तु उन्होंने ऐसा नहीं करके अपनी शक्ति का उपयोग कर जीवनोत्थान व सर्वोत्कृष्ट सुखद स्थान को प्राप्त कर लिया । यही बात हनुमान के जीवन से ले सकते हैं। उन्होंने अपनी शक्ति का सदुपयोग किया
और अन्यायी व्यक्ति का पक्ष न लेकर सदाचारी और नीति सम्पन्न का सहयोग . करके, अपने जीवन को आदर्श बनाया व अक्षय सुखों में लीन हो गये । इसी तरह भीम के जीवन से हमें जानने को मिलता है कि अन्याय और अत्याचार को मिटा के अपना जीवन समर्पित कर, वे अविचल पद पर आसीन हो गये।
अब कलियुग के समय में हुए महामना पू० प्राचार्य प्रवर श्री हस्तीमलजी म० सा० । जिनका जन्म वि० सं० १९६७ पौष सुदी चौदस को पीपाड़ शहर में हुआ । १० वर्ष की अल्पावस्था में अपनी माता सुश्राविका रूपादेवीजी के साथ वि० सं० १९७७ माघ सुदी दूज के दिन, अजमेर में संयम-पथ पर आरूढ़ हुए। आपके दीक्षा-गुरु पूज्य शोभाचन्दजी म. सा० हुए । सर्व हिताय-सर्व सुखाय, वीतराग मार्ग पर आरूढ़ होते हुए वि० सं० १९८७ वैशाख सुदी तीज, अक्षय तृतीया के दिन जोधपुर सिंहपोल में पंच-परमेष्ठी के तृतीय पद आचार्य पर आपश्री को चतुर्विध संघ ने सुशोभित किया।
आपश्री ने अपना सम्पूर्ण जीवन स्व-पर कल्याण में ही समर्पित किया । इसी के कारण आपश्री के सम्पर्क में आने वाला कोई भी व्यक्ति खाली नहीं लौटता था । सामायिक-स्वाध्याय, ध्यान, मौन, नैतिक उत्थान, कुव्यसनत्याग इत्यादि जीवन जीने की कला आप से प्राप्त होती थी । आपश्री स्वयं भी ध्यान-मौन के साधक, अप्रमत्त जीवन-यापन करने वाले, आकर्षक व्यक्तित्व के धनी, असीम आत्म-शक्ति के पुंज, युग-द्रष्टा, इतिहास-मार्तण्ड, सामायिक-स्वाध्याय प्रणेता एवं चतुर्विध संघ पर सफल अनुशासक सिद्ध हुए।
आज हम ज्ञान-चर्चा के माध्यम से मिल रहे हैं। एक दूसरे के विचारों का आदान-प्रदान कर रहे हैं । इस विद्वत् परिषद की स्थापना के पीछे भी आचार्य श्री की ही प्रेरणा रही हुई है। इसी कारण से श्रीमंतों एवं विद्वत्जनों
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