Book Title: Jinvani Special issue on Acharya Hastimalji Vyaktitva evam Krutitva Visheshank 1992
Author(s): Narendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal
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• प्राचार्य श्री हस्तीमलजी म. सा.
• २२७
लिपियों व चौंसठ कलाओं का ज्ञान अपनी पुत्रियों ब्राह्मी व सुन्दरी के माध्यम से ही दिया। भगवान ने उनके साथ अनेक अन्य नारियों को भी दीक्षित कर स्त्रियों के लिए धर्म का मार्ग खोल दिया।
कई युगों पश्चात् महावीर स्वामी ने चतुर्विध संघ की स्थापना कर नारियों के इस सम्मान को बरकरार रखा और तत्कालीन नारियों ने भी विभिन्न रूपों में अपनी विशिष्ट छाप अंकित की। वैराग्य की प्रतिमूर्ति साध्वी-प्रमुखा चन्दनबाला, लोरी से पुत्रों का जीवन-निर्माण करती माता मदालसा, श्रेणिक को विधर्मी से धार्मिक बनाने वाली धर्म सहायिका रानी चेलना एवं अनेकानेक अन्य विभूतियाँ जो अपने समय की नारियों का प्रतिनिधित्व करती हुई आज भी महिलाओं में आदर्श का प्रतीक हैं और सम्मान के सर्वोच्च शीर्ष पर आसीन हैं।
किन्तु जैसे-जैसे कालचक्र चलता रहा, नारी में वैराग्य, त्याग, धर्म, नैतिकता, अध्यात्म और सृजन की ये वृत्तियाँ उत्तरोत्तर क्षीण होती गईं। उनके भीतर की मदालसा, कमलावती, ब्राह्मी और सुन्दरी मानों कहीं लुप्त हो रही थीं। अतीत से वर्तमान में प्रवेश करते-करते, समय में एक वृहद किन्तु दु:खद परिवर्तन आ चुका था । अब नारी का उद्देश्य मात्र भौतिक उपलब्धियों तक सीमित हो गया । सामाजिक चेतना की भावना कहीं खो गई और धर्म-समाज के निर्माण की कल्पनाएँ धूमिल हो गईं।
ऐसे में मसीहा बन कर आगे आये आचार्य हस्ती। वे नारी के विकास में ही समाज के विकास की सम्भावना को देखते थे । वे कहते कि "स्त्रियों को
आध्यात्मिक पथ पर, धर्म पथ पर अग्रसर होने के लिए जितना अधिक प्रोत्साहित किया जायेगा, हमारा समाज उतना ही अधिक शक्तिशाली, सुदृढ़ और शक्तिशाली बनेगा।"
वे यह मानते थे कि धर्म, धार्मिक विचारों, धार्मिक क्रियाओं एवं उसके विविध आयोजनों के प्रति अटट आस्था और प्रगाढ रुचि होने के कारण स्त्रियां धर्म की जड़ों को सुदृढ़ करने और धार्मिक विचारों का प्रचार-प्रसार करने में पुरुषों की अपेक्षा अत्यधिक सहायक हो सकती हैं और हम सभी जानते हैं कि इस बात को झुठलाया नहीं जा सकता।
किन्तु यह तभी सम्भव था जबकि नारियाँ सुसंस्कारी हों, उनमें उत्थान की तीव्र उत्कंठा हो और धर्म का स्वरूप जानने के साथ-साथ वे उसकी क्रियात्मक परिणति के लिए भी तत्पर हों जबकि आज इन भावनाओं का अकाल-सा हो गया था । तव आचार्यश्री अतीत के उन गौरवशाली स्वणिम दृष्टान्तों को वर्तमान के ज़हन में पुनः साकार करने का स्वप्न संजोकर नारी में चेतना व जागति
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