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• प्राचार्य श्री हस्तीमलजी म. सा.
प्रार्थी कहता है-भाई, बात तुम्हारी सच्ची है । मैं अशुद्ध हूँ । कलंकित हूँ, कल्मषग्रस्त हूँ, मगर यह भी तो सत्य है कि कि ऐसा होने के कारण ही यह प्रार्थना कर रहा हूँ । अशुद्ध न होता तो शुद्ध होने की प्रार्थना क्यों करता ? कलंकित न होता तो निष्कलंक होने की प्रार्थना क्यों करता ? जो शुद्ध है, बुद्ध है और पूर्ण है, उसे प्रार्थना की दरकार ही नहीं होती।
एक छोटा सा नाला अत्यन्त गंदले पानी का नाला, जब गंगा की धारा के साथ मिलता है और गंगा उसे थोड़ी दूर तक संग-संग ले जाती है, तो वह गंदा पानी, गटर का पानी भी गंगाजल बन जाता है। उसकी मलिनता गंगाजल से धुल जाती है । मगर ऐसा होगा तभी जब वह कुछ क्षणों तक गंगा के साथ मिल कर चलेगा।
तो प्रार्थना में हमें क्या करना है ? परमात्मा के स्वरूप के साथ मिलकर चलना है।
प्रार्थना में आप बोलते रहे कि-प्रभो! आप में राग नहीं, द्वष नहीं, रोष नहीं, आप वीतराग हैं, परन्तु आपका रंग भगवान् के रंग में न मिल रहा हो, आप उनके शब्दों के साथ न चल रहे हों, तो वैसी निर्मलता आप कैसे प्राप्त कर सकते हैं ? अगर आप गंगा रूप बनना चाहते हैं तो अपने आपको गंगा जी की धारा में परमात्मस्वरूप में मिलाकर कुछ समय तक संग-संग चलना पड़ेगा । ऐसा किया तो आपको मलिनता दूर हो जाएगी और आप में निर्मलता आ जाएगी।
अगर हम अपने अन्तःकरण को परमात्मा में मिला कर एकरूप नहीं कर लेते, आत्मा और परमात्मा के बीच व्यवधान बना रहने देते हैं, तो दस, बीस वर्ष तक क्या, असंख्य जन्मों तक पचने पर भी परमात्मामय नहीं बन सकते । हमारी मलिनता दूर नहीं हो सकती । वह तो तभी दूर होगी जब दोनों के बीच का पर्दा हट जाय, दोनों में कोई व्यवधान न रह जाय और हम अपने चित्त को परमात्मा के विराट् स्वरूप में तल्लीन कर दें।
कुछ दिन पहले अर्जुनमाली का उदाहरण आपके सामने रक्खा था । वह छह महीनों तक भयानक हिंसाकृत्य में रचा-पचा रहा, मगर जब भगवान् महावीर के चरणों में जा पड़ा और उनकी विचारधारा में मिल कर बहने लगा, अपना आपा खोकर तन्मय हो गया तो उसे शुद्ध-बुद्ध और निर्मल होते क्या देर लगी? सारा मैल धुल गया।
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