Book Title: Jinvani Special issue on Acharya Hastimalji Vyaktitva evam Krutitva Visheshank 1992
Author(s): Narendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal

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Page 363
________________ ३४४ • ६. जिसको चाह है, वह अरबों की सम्पदा पाकर भी दुःखी है । चाह मिटने पर ही चिन्ता मिटती है । सन्तों ने ठीक कहा है "सन्तोषी सदा सुखी, दुःखी तुष्णावान् ।” संसार के प्रगणित पशु-पक्षी और कीट पतंगादि जीव, जो संग्रह नहीं करते, वे मानव से अधिक निश्चिन्त एवं शोक रहित हैं । संग्रहवान आसक्त मानव से वह अधिक सुखी है, जो अल्प संग्रही और प्रासक्ति रहित है । संसार की सारी सम्पदा किसी एक असन्तोषी को मिल जाय, तब भी उस लोभी की इच्छा पूर्ण नहीं हो सकती, क्योंकि इच्छा मानव के समान अनन्त है । ज्ञानियों ने कहा है- मानव, इस नश्वर सम्पदा के पीछे भान भूलकर मत दौड़ । यह तो पापी जीव को भी अनन्त बार मिल गई है । यदि सम्पदा ही मिलानी है, तो ज्ञान, दर्शन, चारित्र की आत्मिक सम्पदा मिला, जो शाश्वत आनन्द को देने वाली है, अन्यथा एक लोकोक्ति में कहा गया है व्यक्तित्व एवं कृतित्व "सुत दारा, अरु लक्ष्मी, पापी के भी होय । सन्त समागम, प्रभु कथा, दुर्लभ जग में दोय ।। 17 पैसे वाले बड़े नहीं, बड़े हैं सद्गुणी, जिनकी इन्द्र भी सेवा करते हैं । Jain Educationa International परिग्रह - मर्यादा का महत्त्व परिग्रह- परिणाम पाँच अणुव्रतों में अन्तिम है और चार व्रतों का संरक्षण करना एवं बढ़ाना इसके ग्राधीन है । परिग्रह को घटाने से हिंसा, असत्य, अस्तेय, कुशील, इन चारों पर रोक लगती है । हिंसा ग्रादि चार व्रत अपने आप पुष्ट होते रहते हैं । इस व्रत के परिणामस्वरूप जीवन में शान्ति और सन्तोष प्रकट होने से सुख की वृद्धि होती है, निश्चितता और निराकुलता आती है । ऐसी स्थिति उत्पन्न होने से धर्म - क्रिया की ओर मनुष्य का चित्त अधिकाधिक आकर्षित होता है । इस व्रत के ये वैयक्तिक लाभ हैं, किन्तु सामाजिक दृष्टि से भी यह व्रत अत्यन्त उपयोगी है । आज जो आर्थिक बैषम्य दृष्टिगोचर होता है, इस व्रत के पालन न करने का ही परिणाम है । प्रार्थिक वैषम्य इस युग की एक बहुत बड़ी समस्या है । पहले बड़े-बड़े भीमकाय यंत्रों का प्रचलन न होने कारण कुछ व्यक्ति आज की तरह अत्यधिक पूंजी एकत्र नहीं कर पाते थे; मगर आज यह बात नहीं रही । आज कुछ लोग यन्त्रों की सहायता से प्रचुर धन एकत्र कर लेते हैं, तो दूसरे लोग धनाभाव के कारण अपने जीवन की अनिवार्य आवश्यकताओं की पूर्ति करने से भी वंचित रहते हैं । उन्हें पेट भर रोटी, तन ढकने को वस्त्र और प्रौषध जैसी चीजें भी उपलब्ध नहीं । इस स्थिति का सामना करने के लिए For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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