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• प्राचार्य श्री हस्तीमलजी म. सा.
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या चिन्ता-शोक घेर लेते तो नया बंध बढ़ता जाता है। इससे कर्म परम्परा चालू रहती है। उसका कभी अवसान-अन्त नहीं हो पाता । अतः ज्ञानी कहते हैं कि कर्म भोगने का भी तुमको ढंग-तरीका सीखना चाहिये। फल भोग की भी कला होती है और कला के द्वारा ही उसमें निखार आता है। यदि कर्म भोगने की कला सीख जानोगे तो तुम नये कर्मों का बन्ध नहीं कर पाओगे । इस प्रकार फल भोग में तुम्हारी आत्मा हल्की होगी। कर्म फल भोग प्रावश्यक :
शास्त्रकारों का एक अनुभूत सिद्धान्त है कि- "कडाण कम्माण न मोक्ख अत्थि ।” तथा “प्रश्वयमेव भोक्तव्यं, कृतं कर्म शुभाशुभम्" यानी राजा हो या रंक, अमीर हो या गरीब, महात्मा हो या दुरात्मा, शुभाशुभ कर्म फल सब जीव को भोगना ही पड़ेगा। कभी कोई भूले-भटके सन्त प्रकृति का आदमी किसी गृहस्थ के घर ठंडाई कहकर दी गई थोड़ी मात्रा में भी ठंडाई के भरोसे भंग पी जाय तो पता चलने पर पछतावा होता है मगर वह भंग अपना असर दिखाए बिना नहीं रहेगी। बारम्बार पश्चात्ताप करने पर भी उस साध प्रकृति को भी नशा आये बिना नहीं रहेगा। नशा यह नहीं समझेगा कि पीने वाला सन्त है और इसने अनजाने में इसे पी लिया है अतः इसे भ्रमित नहीं करना चाहिये। नहीं, हर्गिज नहीं। कारण, बुद्धि को भ्रमित करना उसका स्वभाव है। अतः वह नशा अपना रंग लाये बिना नहीं रहेगा। बस, यही हाल कर्मों का है।
भगवान् महावीर कहते हैं कि- "हे मानव ? सामान्य साधु की बात क्या ? हमारे जैसे सिद्धगति की ओर बढ़ने वाले जीव भी कर्म फल के भोग से बच नहीं सकते। मेरी आत्मा भी कर्म के वशीभूत होकर भव-भव में गोते खाती हुई कर्म फल भोगती रही है। मैंने भी अनन्तकाल तक भवप्रपंच में प्रमादवश कर्मों का बंध किया, जो आज तक भोगना पड़ रहा है। कर्म भोगते हुए थोड़ा सा प्रमाद कर गये, तो दूसरे कर्म पाकर बंध गए, चिपक गए।"
मतलब यह है कि कर्मों का सम्बन्ध बहुत जबर्दस्त है। इस बात को अच्छी तरह समझ लिया जाये कि हमारे दैनिक व्यवहार में, नित्य की क्रिया में कोई भूल तो नहीं हो रही है ? नये कर्म बांधने में कितना सावधान हूँ ? कर्म भोगते समय कोई नये कर्म तो नहीं बंध रहे हैं ! इस तरह विचारपूर्वक काम करने वाला कर्मबंध से बच सकता है । कर्मों की धूप-छांह:
परन्तु संसार का नियम है कि सुख के साथ दुःख पाता है और साता के साथ असाता का भी चक्र चलता रहता है। यह कभी नहीं हो सकता कि शुभाशुभ कर्म प्रकृतियों में मात्र एक ही प्रकृति उदय में रहे और दूसरी उसके
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