Book Title: Jinvani Special issue on Acharya Hastimalji Vyaktitva evam Krutitva Visheshank 1992
Author(s): Narendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal
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• व्यक्तित्व एवं कृतित्व
अथवा जो संयमहीन होकर भी अपने को संयमो प्रदर्शित और घोषित करते हैं, उन्हें मैं वन्दना नहीं करूँगा। आनन्द ने संकल्प किया-मैं वीतरागवाणी पर अटल श्रद्धा रखूगा और शास्त्रों के अर्थ को सही रूप में समझ कर उसे क्रियान्वित करने का प्रयत्न करूँगा।
शास्त्रों के अध्ययन में तटस्थ दृष्टि प्रावश्यक :
यदि शास्त्र का अर्थ अपने मन से खींचतान कर लगाया गया, तो वह आत्मघातक होगा। उसके धर्म को समझने में बाधा उपस्थित होगी। शास्त्र का अध्ययन तटस्थ दृष्टि रखकर किया जाना चाहिए, अपना विशिष्ट दृष्टिकोण रखकर नहीं। जब पहले से कोई दृष्टि निश्चित करके शास्त्र को उनके समर्थन के लिए पढ़ा जाता है, तो उसका अर्थ भी उसी ढंग से किया जाता है । कुरीतियों, कूमार्गों और मिथ्याडम्बरों को एवं मान्यता भेदों को जो प्रश्रय मिला है, उसका एक कारण शास्त्रों का गलत और मनमाना अर्थ लगाना है । ऐसी स्थिति में शास्त्र शस्त्र का रूप ले लेता है । अर्थ करते समय प्रसंग आदि कई बातों का ध्यान रखना पड़ता है।
प्रर्थ की समीचीनता प्रसंग से :
कोई साहब भोजन करने बैठे । उन्होंने अपने सेवक से कहा- 'सैन्धवम् आनयं । वह सेवक घोड़ा ले आया । भोजन का समय था फिर भी वह 'सैन्धव' मंगाने पर घोड़ा लाया। खा-पीकर तैयार हो जाने के पश्चात् कहीं बाहर जाने की तैयारी करके पुनः उन्होंने कहा-'सैन्धवम् आनयं ।' उस समय सेवक नमक ले आया, यद्यपि सैन्धव का अर्थ घोड़ा भी है और नमक भी; कोष के अनुसार दोनों अर्थ सही हैं। फिर भी सेवक ने प्रसंग के अनुकूल अर्थ न करके अपनी मूर्खता का परिचय दिया। उसे भोजन करते समय 'सैन्धव' का अर्थ 'नमक' और यात्रा के प्रसंग में 'घोड़ा' अर्थ समझना चाहिये । यही प्रसंगानुकूल सही अर्थ है। ऊट-पटांग अथवा अपने दुराग्रह के अनुकूल अर्थ लगाने से महर्षियों ने जो शास्त्ररचना की है, उसका समीचीन अर्थ समझ में नहीं आ सकता।
पानंद का निर्दोष दान देने का संकल्प :
आनंद ने अपरिग्रही त्यागी सन्तों को चौदह प्रकार का निर्दोष दान देने का संकल्प किया, क्योंकि आरम्भ और परिग्रह के त्यागी साधु दान के सर्वोत्तम पात्र हैं। उसने जिन वस्तुओं का दान देने का निश्चय किया, वे दान इस प्रकार हैं-(१) अशन (२) पान (३) खाद्य-पकवान आदि (४) स्वाद्य-मुखवास चूर्ण आदि (५) वस्त्र (६) पात्र (७) कम्बल (७) रजोहरण (६) पीठ-चौकी
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