Book Title: Jinvani Special issue on Acharya Hastimalji Vyaktitva evam Krutitva Visheshank 1992
Author(s): Narendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal
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• प्राचार्य श्री हस्तीमलजी म. सा.
• २६७
देव निरंजन ग्रन्थ-हीन गुरु, धर्म दयामय धार । तीन तत्व पाराधन से मन, पावे शान्ति अपार ।। दयामय० ॥ २ ॥ नर भव सफल करन हित हम सब, करें शुद्ध आचार। पावें पूर्ण सफलता इसमें, ऐसा हो उपकार ।। दयामय० ।। ३ ।। तन-धन-अर्पण करें हर्ष से, नहीं हों शिथिल विचार । ज्ञान धर्म में रमे रहें हम, उज्ज्वल हो व्यवहार ।। दयामय० ॥ ४ ॥ दिन-दिन बढ़े भावना सबकी, घटे अविद्या भार । यही कामना गजमुनि' की हो, तुम्ही एक आधार ॥ दयामय० ।। ५ ।।
(२६) संघ की शुभ कामना
( तर्ज-लाखों पापी तिर गये... ) श्री संघ में आनन्द हो, कहते ही वन्दे जिनवरम् ।। टेर ।। मिथ्यात्व निशिचर का दमन, कहते ही वन्दे जिनवरम्,
सम्यक्त्व के दिन का उदय, कहते"।।१।। दिल खोल अरु मल दूर कर, अभिमान पहले गाल दो,
कल्याण हो सच्चे हृदय, कहते"।। २ ।। दानी दमी ज्ञानी बनें, धर्माभिमानी हम सभी,
बिन भेद प्रेमी धर्म के, कहते ॥ ३ ॥ सत्य, समता, शील अरु संतोष मानस चित्त हो,
त्यागानुरत मम चित्त हो, कहते...।। ४ ।। शुभ धर्म सेवी से नहीं, परहेज अणुभर भी हमें,
___ सर्वस्व देवें संघ हित, कहते...।। ५ ।। जिनवर हमें वर दो यही, सहधर्मी वत्सलता करें, अनभिज्ञ को 'करी' बोध दें, कहलावे बन्दे जिनवरम् ॥ ६ ॥ श्री संघ में आनन्द हो, कहते ही वन्दे जिनवरम् ॥
. (३०)
भगवत् चरणों में ( तर्ज-तू धार सके तो धार संयम सुखकारी ) होवे शुभ प्राचार प्यारे भारत में, सब करें धर्म प्रचार,
प्यारे भारत में ।। टेर ।।
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