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• प्राचार्य श्री हस्तीमलजी म. सा.
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एकान्तर व्रत करना प्रारम्भ किया। पूणी के धन्धे में तो घर का खर्च मात्र चलता था। अतः वह तपस्या से अपना खाना बचा कर स्वधर्मी बन्धु की सेवा करता था।
मध्यम श्रावक षट्कर्म की साधना के समान द्वादश व्रत का भी पालन करता है।
द्वादश व्रत :
आनन्द श्रावक ने भगवान् महावीर का उपदेश श्रवण कर प्रार्थना कीप्रभो! जैसे आपके पास बहुत से राजा, ईश्वर, तलवर, मांडवी, कोटुम्बी और सार्थवाह आदि मुण्डित होकर अणगार धर्म की प्रव्रज्या ग्रहण करते हैं, वैसे मैं अणगार धर्म ग्रहण करने में समर्थ नहीं हूँ। मैं आपके पास पाँच अणुव्रत, सात शिक्षा व्रत रूप द्वादश विध गृहस्थ धर्म को ग्रहण करूँगा। मालूम होता है प्राचीन समय के श्रावक प्रारम्भ से ही सम्यग्दर्शन पूर्वक बारह व्रत ग्रहण करते थे। वे बीच के जघन्य मार्ग में अटके नहीं रहते थे। अानन्द ने जिन श्रावक व्रतों को स्वीकार किया था, उनका संक्षिप्त परिचय निम्न प्रकार है
१. स्थल प्राणातिपात विरमण व्रत : इस व्रत के अनुसार गृहस्थ त्रस जीवों की संकल्प पूर्वक हिंसा करने व करवाने का दो करण, तीन योग से त्याग करता है। चलते-फिरते जीवों की जीवन भर मन, वचन, काय से दुर्भावनावश हिंसा करनी नहीं, करवानी नहीं ।
२. स्थल मृषावाद विरमरण व्रत : इसके अनुसार श्रावक स्थूल झूठ का त्याग करता है। दूसरे का जानी माली नुकसान हो ऐसा झूठ मन, वचन, काय से ज्ञानपूर्वक बोलना नहीं । बड़ा झूठ पाँच प्रकार का है जैसे(१) कन्या सम्बन्धी, (२) गोग्रादि पशु शम्बन्धी, (३) भूमि सम्बन्धी, (४) जमा रकम या धरोहर दबाने सम्बन्धी तथा (५) झठी साक्षी या मिथ्या लेख सम्बन्धी । श्रावक को इनका त्याग करना होता है, तभी वह समाज, राष्ट्र और परिवार में विश्वासपात्र माना जाता है।
३. स्थूल अदत्तादान विरमणव्रत : इसके अनुसार श्रावक बड़ी चोरी का त्याग करता है। वह स्वयं चोरी नहीं करता, जानकर चोरी का माल नहीं लेता, एक देश का माल दूसरे देश में बिना अनुमति नहीं भेजता और बिना अनुमति के राज्य-सीमा का अतिक्रमण नहीं करता। कम ज्यादा तोल माप रखना और माल में मिलावट कर ग्राहक को धोखा देने में, श्रावक अपने अचौर्य व्रत का दूषण मानता है। इस तरह वह चोरी का दो करण तीन योग से त्याग करता है। "जाइजो लाख रहीजो साख” के अनुसार वह इतना विश्वस्त होता है कि यदि
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