Book Title: Jinvani Special issue on Acharya Hastimalji Vyaktitva evam Krutitva Visheshank 1992
Author(s): Narendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal
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• व्यक्तित्व एवं कृतित्व
तत्त्व हैं । चेतन का चेतन के साथ सम्बन्ध होना सजातीय रगड़ है और जड़ के साथ सम्बन्ध होना विजातीय रगड़ है।
ज्ञानी पुरुषों के साथ तत्त्वविमर्श करने से ज्ञान की वृद्धि होती है। उनके साथ किया हुआ विचार-विमर्श संवाद कहलाता है और जब मूर्तों के साथ माथा रगड़ा जाता है, तो वह विवाद का रूप धारण कर लेता है और शक्ति का वृथा क्षय होता है, कलह. क्रोध और हिंसा की वृद्धि होती है, तकरार बढ़ती है और स्वयं की शांति भी समाप्त हो जाती है। अतएव हमारी प्रार्थना का ध्येय है-जिन्होंने अज्ञान का आवरण छिन्न-भिन्न कर दिया है, मोह के तमस को हटा दिया है । अतएव जो वीतरागता और सर्वज्ञता की स्थिति पर पहँचे हैं, जिन्हें अनन्त ज्ञान, अनन्त दर्शन, अनन्त वल और अनन्त शांति प्राप्त हुई है, अनन्त सुख सम्पत्ति का भण्डार जिनके लिए खुल गया है । उन परमात्मा के साथ रगड़ खाना और इसका आशय है-अपने अन्तर की ज्योति को जगाना।
वह ज्योति कहीं से उधार खरीद कर नहीं लानी पड़ती, यह आत्मा में ही विद्यमान है; मगर आवरणों की सघनता के कारण वह दबी हुई है, छिपी हुई है। उसे ऊपरी दृष्टि से हम देख नहीं पाते । तिल के दाने में तेल मौजूद है, मगर उसको अभिव्यक्ति के लिए रगड़ की आवश्यकता होती है। बिना रगड़ के वह नहीं निकलता । तिल के दानों को लेकर बच्चा यदि किसी पत्थर से धमाधम कूटने लगे तो भी क्या होगा ? तब भी वह ठीक तरह से नहीं निकलेगा। वह काम नहीं पा सकेगा। इसी प्रकार दूध में मक्खन है, दही में मक्खन है और दियासलाई में आग मौजूद है । फिर इन सबको रगड़ की अपेक्षा रहती है, मंथन की अपेक्षा रहती है।
मगर मँथने की भी एक विशिष्ट विधि होती है। ठीक मथनी हा और जानकार मंथन करने वाला हो, तो ही दही में से मक्खन निकलता है । अगर आपको मथनी पकड़ा दी जाय, तो मक्खन निकाल सकेंगे ? नहीं, जो मंथनक्रिया में अकुशल है, वह नहीं निकाल सकता। यद्यपि दूध-दही में मक्खन दीखता नहीं है, फिर भी कुशल मंथनकर्ता कुछ ही मिनटों में विधिपूर्वक मथानी घुमा कर मक्खन निकाल लेता है।
प्रार्थना भी मथनी घुमाना है; मगर जैसा कि अभी कहा गया, बह विधिपूर्वक होना चाहिए । सर्वप्रथम तो उद्देश्य स्पष्ट होना चाहिए । जैसे मथनी घुमाने का उद्देश्व नवनीत प्राप्त करना है, उसी प्रकार प्रार्थना का उद्देश्य परमात्मभाव रूप मक्खन को प्राप्त करना है। मन्थनध्वनि के समान जब
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