Book Title: Jinvani Special issue on Acharya Hastimalji Vyaktitva evam Krutitva Visheshank 1992
Author(s): Narendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal

View full book text
Previous | Next

Page 322
________________ • प्राचार्य श्री हस्तीमलजी म. सा. • ३०३ उत्कृष्ट श्रावक : वैदिक परम्परा में जैसे गहस्थाश्रम के पश्चात् वानप्रस्थ का विधान है। जैन परम्परा में ऐसा ही व्रती जीवन के बाद पडिमाधारी साधन का उल्लेख है। यह श्राबक जीवन की उत्कृष्ट साधना है। पडिमाओं का वर्णन दशाश्रुतस्कंध सूत्र की छठी दशा में विस्तार से किया गया है। इस विषय पर लेखकों ने स्वतन्त्र विचार भी किया है, अत: यहाँ संक्षिप्त परिचय मात्र ही प्रस्तुत किया जाता है। अभिग्रह विशेष को पडिमा या प्रतिमा कहते हैं। श्रावक की ११ और साधु के लिए मुख्य १२ पडिमाएँ कही गयी हैं। श्रावक की ग्यारह पडिमाएँ निम्न प्रकार हैं १. दर्शन पडिमा : निर्दोष सम्यग्दर्शन का पालन करना । २. व्रत पडिमा : निरतिचार सम्यक् रूप से श्रावक व्रतों की आराधना करना। ३. सामायिक पडिमा : त्रिकाल सामायिक का अभ्यास करना। ४. पौषध पडिमा : प्रतिमास पर्वतिथि के छः पौषध करना । ५. एक रात्रिक पडिमा : इसमें अस्नान आदि पाँच बोलों का पालन करते हुए जघन्य एक दो तीन दिन, उत्कृष्ट पाँच मास तक विचरता है। ६. ब्रह्मचर्य पडिमा : पूर्वोक्त नियमों के साथ इसमें दिन रात पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन किया जाता है । इसका उत्कृष्ट काल ६ मास का है। ७. संचित पाहार वर्जन पडिमा : पूर्व पडिमा के नियमों का पालन करते हुए सचित्ताहार का त्याग रखना । इसका उत्कृष्ट काल ७ मास है। ८. प्रारम्भ त्याग पडिमा : इसमें स्वयं प्रारम्भ करने का त्याग होता है। इसका उत्कृष्ट काल ८ मास है। ९. प्रेष्य पडिमा : इसमें पडिमाधारी दूसरे से प्रारम्भ करवाने का त्याग रखता है । इसका उत्कृष्ट काल नव मास का कहा गया है । १०. उद्दिष्ट त्याग पडिमा : इस पडिमा में अपने उद्देश्य से किये हुए प्रारंभ का भी साधक त्याग करता है। शिर पर शिखा रखता या क्षुरमुण्डन करता है । इसका उत्कृष्ट काल दस मास का है। Jain Educationa international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378